जीवन का मूल सुख मन की शांति है और मन की शांति केवल सच्चे कर्म से ही प्राप्त हो सकती है। ‘ग़ज़ल मंदाकिनी’ मेरे कर्म की वो आनंदमई अनुभूति है जिसे लिखते हुए मैंने मन की मनमोहक, भावविभोर करने वाली उसी शांति का अनुभव किया है। कविता कवि की अप्रतिम अनुभूति है चाहे वो दिनकर की रश्मीरथी हो या तुलसी की रामचरित मानस, ग़ालिब की ग़ज़लें हों या मीर के शे’र। जीवंत अनुभव को जब किसी बंधन में बाँधा जाए तो कविता का जन्म होता है। मन की गहराइयों में जब भावों का ज्वार उठता है तब कवि उसे बिना किसी आक्रोश या गम को प्रकट किए काग़ज़ पर उकेर देता है, वही काव्य की सर्जना है। ‘ग़ज़ल मंदाकिनी’ एक संकलन है इतिहास में घटित घटनाओं का और वर्तमान में बीतते मनावीय मूल्योंउ का, जहाँ कविताएँ इतिहास के किरदारों से बात करती है तो ग़ज़ल आज के समाज को आईना दिखाती प्रतीत होती है- अभिषेक नागर\n
Add a review
Login to write a review.
Customer questions & answers