गोदभरी - \nपद्मा सचदेव की कहानियों का संसार नारी का विशेषकर मध्यवर्ग और निम्नवर्ग की भारतीय नारी का संसार है। उन्हें नारियों की आन्तरिक समस्या की गहरी समझ है। उनके प्रति उनमें एक संवेदनशील दृष्टिबोध है। यही कारण है कि पद्मा जी की कहानियों में नारी के अन्तर्द्वन्द्वों, उनकी आशा-आकांक्षाओं का हमदर्द दिग्दर्शन है।\nकुल ग्यारह कहानियों के इस संग्रह 'गोदभरी' में पद्मा जी का अनुभव क्षेत्र और कल्पना जगत अन्य कथाकारों से बहुत भिन्न है। अभिव्यक्ति का रंग भी उनका अपना है, निराला है।\nपद्मा सचदेव का नाम डोगरी कहानी के क्षेत्र में प्रभावपूर्ण ढंग से उभरकर आया है। डोगरी की तरह उनकी हिन्दी कहानियों में भी नयी मानसिकता और नयी संवेदन-शक्ति का संचार हुआ है। कहना होगा कि कहानियों का तानाबाना, चरित्र चित्रण और परिवेश डोगरा विशेष होकर भी उनमें सँजोयी अनुभूति की सघनता अपनी कलात्मकता में उन्हें सार्वभौमिक बना देती है। उन्हीं के अनुसार, "ये कहानियाँ जम्मू की ही नहीं, उन पात्रों की भी हैं जो मुझे शहर से बाहर मिले। इनका जामा डोगरी-हिन्दी दोनों में रहा... पर कहानी रही उन्हीं पात्रों की जो मेरे देश के अपने हैं।"
पद्मा सचदेव - जम्मू में 1940 में जन्मी पद्मा सचदेव को साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्कार विरासत में मिले हैं। पहले उन्होंने डोगरी कवयित्री के रूप में ख्याति प्राप्त की और लोकगीतों से प्रभावित होकर कविता और गीत लिखे। बाद में हिन्दी और गद्य में भी साधिकार लिखा। अब तक डोगरी में उनके सात कविता-संग्रह—'मेरी कविता मेरे गीत', 'तवी ते झन्हां', 'न्हैरियाँ गलियाँ', 'पोटा पोटा निम्बल', 'उत्तरबैहनी', 'धैन्थियाँ' और 'अक्खरकुण्ड' प्रकाशित हैं। हिन्दी में उनके 'अब न बनेगी देहरी', 'नौशीन', 'भटको नहीं धनंजय' और 'जम्मू जो कभी शहर था' चार उपन्यास; 'गोदभरी', 'बू तू राजी' और 'इन बिन' तीन कहानी-संग्रह; 'मितवाघर', 'दीवानख़ाना' और 'अमराई'। तीन साक्षात्कार; 'मैं कहती हूँ आँखिन देखी' यात्रा वृत्तान्त; ‘बूँदबावड़ी' आत्मकथा प्रकाशित हो चुके हैं। सम्मान-पुरस्कार: साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1970), सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार (1987), हिन्दी अकादेमी पुरस्कार (1987-88), उत्तर प्रदेश हिन्दी अकादेमी का सौहार्द पुरस्कार (1989), आन्ध्र प्रदेश का जोशुआ पुरस्कार (1999), मा. दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, जम्मू-कश्मीर सरकार के 'रोब ऑफ़ ऑनर' तथा राजा राममोहन राय पुरस्कार के अतिरिक्त पद्माजी 'पद्मश्री' उपाधि (2001) से अलंकृत हैं।
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