ग्रामीण पत्रकारिता : चुनौतियां और संभावनाएं\n\nभारत को गाँवों का देश कहा जाता है। आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा अभी भी गाँवों में रहता है। उसकी आजीविका का साधन कृषि और उस पर आधारित उद्योग हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि आज़ादी के सात दशक बीत जाने पर भी यह राजनीतिक मुद्दा ही बना रह गया। प्रशासनिक स्तर पर विकास के केन्द्र में कभी ग्रामीण भारत नहीं आ पाया। विकास का प्रवाह शहरोन्मुखी ही रहा। 70 प्रतिशत आबादी की उपेक्षा कर भारत को समृद्ध बनाने का दिवास्वप्न देखा जाता रहा। देश में कहीं भी गाँव को शहर नहीं बनाया गया बल्कि शहर की गाँवों में घुसपैठ कराई जाती रही। बात सिर्फ़ बुनियादी सुविधाओं की नहीं, संस्कृति की है।
सुशील भारती जन्म : 6 जनवरी, 1965 ( दरभंगा, बिहार)। शिक्षा : एम.ए. (दर्शनशास्त्र) । करीब चार दशकों से पत्रकारिता एवं लेखन में सक्रिय ।
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