गुड़िया का घर - \nउर्दू की प्रतिष्ठित उपन्यासकार जीलानी बानो के चार लघु उपन्यासों (जीलानी बानो ने इन्हें लघु उपन्यास ही कहा है) का संग्रह है 'गुड़िया का घर'। इनमें अपने समय और आसपास के मुस्लिम समाज और जीवन को देखने-दिखाने की कोशिश है। दरअसल इन उपन्यासों में अतीत के स्मृति चित्रों के आइने में वर्तमान की पड़ताल और भविष्य के सपने हैं।\nजीलानी बानो की आस्था मानवीयतापरक है। वे शायद यह मानती हैं कि मानवीय पीड़ा, दायित्व चेतना और मुक्ति की भावना मनुष्य की उस आन्तरिकता को उभार सकती है जिसमें आज के व्यक्ति और समाज की सही तस्वीर उजागर होती है। और उनकी यह सोच उनके इन लघु उपन्यासों में भी मुखर है। कह सकते हैं कि उनके लेखन में सब से बड़ी चिन्ता भी जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों की रक्षा और अपसंस्कृति के संकट से मनुष्य को बचाये रखने की है।\nइन उपन्यासों का सरोकार उन सभी चीज़ों से है जो तमाम विकृतियों के पार ख़ूबसूरत मुलम्मों से परे दिखाई पड़ती हैं और जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने का काम करती हैं। जीलानी बानो इन उपन्यासों के ज़रिये अँधेरी भूल-भुलैयों में हवा, धूप, ख़ुशबू और खुले आकाश की तलाश करती हैं......
जीलानी बानो - जन्म: 14 जुलाई, 1936 को बदायूँ (उत्तर प्रदेश) में। शिक्षा: एम.ए. (उर्दू साहित्य), दिल्ली विश्वविद्यालय से। 1954 में लघु कथा-लेखन से लेखकीय जीवन की शुरूआत। अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें दो बड़े उपन्यास, पाँच कहानी-संग्रह और लघु-उपन्यास शामिल हैं। देश की लगभग सारी भाषाओं में रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित। अंग्रेज़ी और रूसी में भी कुछ रचनाएँ अनूदित प्रकाशित। कई महत्त्वपूर्ण साहित्यिक संस्थाओं के ज़िम्मेदार पदों पर अलग-अलग समयों में कार्यरत। सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार, मोदी ग़ालिब अवार्ड और क़ौमी हाली अवार्ड के अलावा उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की उर्दू अकादमियों द्वारा पुरस्कृत-सम्मानित। प्रमुख कृतियाँ: रोशनी के मीनार, निर्वाण, पराया घर, यह कौन हँसा (कहानी-संग्रह); ऐवाने ग़ज़ल, बारिशे संग, गुड़िया का घर, जुगनू और सितारे, नग़मे का सफ़र (उपन्यास/लघु उपन्यास)।
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