Gulabi Kameez

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गुलाबी कमीज़ - 'गुलाबी कमीज़' ऐसा रोचक उपन्यास है जो बच्चों को वैश्विक महामारी कोरोना के आतंक से उबारता है और उन्हें सुखद भविष्य का स्वप्न सौंपता है। कथानायक हीरा ग्यारह साल का मासूम बच्चा है। उसकी आँखों के सामने कोरोना से उपजा भयावह सन्त्रास है, पर हृदय में संघर्ष की ताक़त, अटूट जिजीविषा और जीतने का विश्वास भी कम नहीं है। श्यामल कैनवास पर अंकित इस उपन्यास की रेखाएँ उज्ज्वल हैं, दुर्दिन में भी स्वार्थ की भूमि से ऊपर उठकर परदुःखकातरता के उदात्त भाव का सन्देश दे रही हैं। उपन्यास सम्पूर्ण समाज को अवसाद और निराशा से बचाता है, जो इस कोरोना काल की सबसे बड़ी ज़रूरत है। कोरोना के सन्दर्भ में बच्चों के मनोबल और आशावादिता से हम सब वाकिफ़ हैं। इसीलिए हीरा का यह सोच हवा की लहरों पर तैरता हुआ पता नहीं कब विश्व भर के बच्चों की आवाज़ बन जाता है, "दुनिया कितनी सुन्दर है। कोरोना इसे बिगाड़ने की पूरी कोशिश कर रहा है, पर हम अपनी दुनिया को बिगड़ने नहीं देंगे।" बात सच है। कोरोना ने भले ही दुनिया को भारी नुक़सान पहुँचाया हो, पर मनुष्य की मेहनत, सच्चाई, ईमानदारी, प्यार, दोस्ती और रिश्तों तक वायरस नहीं पहुंच सका है। 'गुलाबी कमीज़' हमें इसी बिन्दु पर आश्वस्त करता है। यही इस उपन्यास का मानवता को सन्देश है और देश के स्वर्णिम भविष्य का संकेत भी। - कामना सिंह गुलाबी कमीज़ - 'गुलाबी कमीज़' ऐसा रोचक उपन्यास है जो बच्चों को वैश्विक महामारी कोरोना के आतंक से उबारता है और उन्हें सुखद भविष्य का स्वप्न सौंपता है। कथानायक हीरा ग्यारह साल का मासूम बच्चा है। उसकी आँखों के सामने कोरोना से उपजा भयावह सन्त्रास है, पर हृदय में संघर्ष की ताक़त, अटूट जिजीविषा और जीतने का विश्वास भी कम नहीं है। श्यामल कैनवास पर अंकित इस उपन्यास की रेखाएँ उज्ज्वल हैं, दुर्दिन में भी स्वार्थ की भूमि से ऊपर उठकर परदुःखकातरता के उदात्त भाव का सन्देश दे रही हैं। उपन्यास सम्पूर्ण समाज को अवसाद और निराशा से बचाता है, जो इस कोरोना काल की सबसे बड़ी ज़रूरत है। कोरोना के सन्दर्भ में बच्चों के मनोबल और आशावादिता से हम सब वाकिफ़ हैं। इसीलिए हीरा का यह सोच हवा की लहरों पर तैरता हुआ पता नहीं कब विश्व भर के बच्चों की आवाज़ बन जाता है, "दुनिया कितनी सुन्दर है। कोरोना इसे बिगाड़ने की पूरी कोशिश कर रहा है, पर हम अपनी दुनिया को बिगड़ने नहीं देंगे।" बात सच है। कोरोना ने भले ही दुनिया को भारी नुक़सान पहुँचाया हो, पर मनुष्य की मेहनत, सच्चाई, ईमानदारी, प्यार, दोस्ती और रिश्तों तक वायरस नहीं पहुंच सका है। 'गुलाबी कमीज़' हमें इसी बिन्दु पर आश्वस्त करता है। यही इस उपन्यास का मानवता को सन्देश है और देश के स्वर्णिम भविष्य का संकेत भी। - कामना सिंह

कामना सिंह - जन्म: आगरा (उ.प्र.) शिक्षा: एम.ए. (दर्शनशास्त्र, हिन्दी), पी.एच.डी. (दर्शनशास्त्र, हिन्दी)। बी.ए., एम.ए. (द्वय) की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान सहित अनेक स्वर्ण पदक। बच्चों एवं बड़ों के लिए समान दक्षता से लेखन। उपन्यास: ‘बोल मेरी मछली’, ‘पद्म-अग्नि’, ‘लॉकडाउन डेज़’, ‘गंगा साक्षी है’, ‘सूरज संग बहती नदी’ और ‘अनलॉक ज़िन्दगी’। कहानी संग्रह: ‘हवा को बहने दो ‘(पुरस्कृत), फिर वसन्त आया (ई-बुक), 'मन सतरंगी'। कविता संग्रह: ‘समां सौगात बन जाये’। समीक्षा: रवीन्द्रनाथ टैगोर के दर्शन में मानववाद, श्री रामकृष्ण-विवेकानन्द का धर्म दर्शन, स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी बालसाहित्य, हिन्दी बालसाहित्य एवं बालविमर्श में सहलेखन, उषा यादव का रचना संसार, उषा यादव के उपन्यासों में नारी-सशक्तीकरण । बाल एवं किशोर उपन्यास: (लगभग दो दर्जन)। पुरस्कार-सम्मान: उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ से नामित सूर पुरस्कार तथा निरंकारदेव सेवक बाल साहित्य इतिहास लेखन सम्मान। 'हवा को बहने दो' को राष्ट्रीय पुरस्कार । विशेष: पत्र-पत्रिकाओं में व्यापक प्रकाशन। पाठ्यक्रम में रचनाओं का संकलन। अनेक कला प्रदर्शनियों में सहभागिता।

कामना सिंह

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