गुरुवर बच्चन से दूर - डॉ. हरिवंशराय बच्चन पर अजितकुमार की चर्चित कृति 'कबकेसा' के बाद उसी तारतम्य में यह 'गुबसेदू' है अर्थात 'गुरुवर बच्चन से दूर'। वस्तुतः इसमें संवादों की दीर्घ श्रृंखला है गुरु-शिष्य के बीच। एक लम्बे कालखण्ड में अजितकुमार जी ने अनौपचारिक ढंग से बातचीत के सिलसिलों में उत्खनन करते हुए जिन प्रसंगों को उकेरा है उनमें ताप है, नवीनता है, अलक्षित दृश्य अर्थ हैं। स्मृतियों का एक कोलॉज है जिसमें समय की धड़कनों का सुगठित इन्दराज है। इस कृति में बच्चन जी की साफ़गोई, साहस और खुलस को जुदा ढंग से पाकर हम कुछ प्रफुल्लित होते हैं और कुछ विस्मित। अजितकुमार ने गुरुवर बच्चन के जीवन के अछूते, अनसुने अध्यायों को प्रस्तुत करने में अपनी एक शैली ईजाद की है, जो विशिष्ट और प्रशंसनीय है। पाठकों के लिए यह एक सुखद अनुभव सिद्ध होगा।
अजितकुमार - जन्म: 1931। साहित्यिक परिवेश में पले-बढ़े अजितकुमार का सौभाग्य था कि वे अपने समय के प्रमुख लेखकों के निकट सम्पर्क में आ सके। बच्चनजी प्रयाग विश्वविद्यालय में उनके गुरु (1948-50) थे; फिर विदेश मन्त्रालय में उनके अफ़सर (1956-62) भी हुए। यह जानकर कि बच्चनजी आत्मकथा के लिए उचित रूपाकार की तलाश में हैं, अजित उनसे अपनी दैनिक बातचीत के नोट्स लेने लगे थे। ये नोट्स कवि की प्रसिद्ध चारखण्डीय आत्मकथा 'क्यानीबद' (1969-87) प्रकाशित होने के वर्षों बाद अंकन की शक्ल में 'कविवर बच्चन के साथ' (भारतीय ज्ञानपीठ, 2009) नाम से छपे थे। अब प्रस्तुत हैं उसके पूरक अंकन 'गुरुवर बच्चन से दूर' (2017) जिनमें गुरु-शिष्य के परवर्ती सम्पर्क-संवाद की मनोरम झलक है।
अजित कुमारAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers