प्रेम को खोजकर पाया जा सकता है क्या? क्या देह और प्रेम दो अलग बातें हैं? क्या सदियों से चली आ रही एकनिष्ठता की परिभाषा महज एक मिथक है? क्या एक ही साथ एक व्यक्ति कई व्यक्तियों के प्रेम में नहीं रह सकता क्या? पुरुष और स्त्री इस मायने में कैसे और किस तरह भिन्न हैं? क्या विवाह जैसी संस्था इस सोशल मिडिया के दौर में बेमानी हो चुकी है? उपन्यास ‘हमन हैं इश्क मस्ताना’ उपरोक्त सभी सवालों को बहुत ही चुप तरीक़े से उठाता है। कथा के पात्रों और परिस्थितियों से गुज़रते हुए ये प्रश्न बार-बार पाठक के मन में बज सकते हैं और कुछ-एक घटनाएँ उन्हें विचलित कर सकती हैं। कथा में मुख्यतः पाँच पात्र हैं– चार स्त्री और एक पुरुष। एक पत्नी के अलावा तीनों स्त्रियों से पुरुष का जो संबंध है वह प्रेम के चार दर्शन की तरह हैं– प्रेम विवाह कर चुका एक पुरुष एक समय ख़ुद को प्रेमविहीन पाता है और याहू मैसेंजर और फ़ेसबुक जैसी जगहें उसे दूसरी-तीसरी जगहों पर भटकाती हैं- मान लीजिए कि अमरेश विस्वाल की घर की परिस्थितियाँ अनुकूल होतीं तो क्या वह फिर भी प्रेम में खानाबदोश बन पाता? काजू दे एकनिष्ठ समर्पण चाहती है और अमरेश के विवाहित होने का तथ्य स्पष्ट होते ही उससे अलग हो जाती है। शिवांगी उसके मन को समझती हुई उसे हर परिस्थिति में स्वीकार करती है– वह एक असाधारण स्त्री के रूप में सामने आती है। ये वही स्त्रियाँ हैं जिनके कारण पुरुष सचमुच का पुरुष बन पाता है– लेकिन मंजरी प्रेम के इस कश्मकश में कहीं टूट जाती है– उसका टूटना अमरेश को इस तरह हिलाता है कि वह पूरी दुनिया भूलकर किसी ट्रांस में चले जाने को श्रेयस्कर मानता है– लेकिन फ़ेसबुक की प्रोफ़ाइल डिलीट कर देने भर से क्या यह जद्दोजहद ख़त्म हो जाती है? एक लेखक-कलाकार की भटकन क्या समाप्त हो जाती है? शायद नहीं। अमरेश अंततः कहीं ही तो लौट नहीं पाता। यह क्यों है– क्या जवाब है इसका?
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Vimalesh TripathiAdd a review
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