Hathiyar Ki Tarah

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हथियार की तरह - \nहिन्दी के सुपरिचित कवि श्री नरेश अग्रवाल का यह नवीनतम कविता संग्रह कवि के नये सृजनात्मक सोपान का साक्ष्य है। नरेशजी यहाँ आते-आते अपना निजी स्वर एवं मुहावरा अर्जित कर लेते हैं और समकालीन कविता में एक विशिष्ट पहचान भी मुद्रित करते हैं। नरेशजी की कविता का पाट विस्तृत और उर्वर हुआ है। साथ ही, आभ्यन्तर का उत्खनन भी गहराई तक सम्भव हुआ है जो किसी भी आत्मसजग कवि के लिए स्पृहा है। ये कविताएँ एक साथ 'पीड़ित समय के पत्र' और 'अन्दरूनी चोटों के घाव' हैं। नरेश अग्रवाल की इन कविताओं में अधिकतर समाज के उपेक्षित लोगों का जीवन है—कुम्हार, रसोइया, मज़दूर, किसान, बुजुर्ग जैसे लोग एक झोंपड़ी है जिसकी कभी कोई नींव नहीं होती, जैसे कि पृथ्वी के बेसहारा लोग। \nनरेशजी की इन कविताओं में गहरी करुणा और जीवनमात्र के प्रति छलछलाता हुआ प्रेम है। चाहे वह बल्ब के बारे में लिखें या अँधेरे के बारे में या फिर मोती के बारे में, एक घना विषाद लगातार साथ चलता है। कवि का स्वर अब अधिक सान्द्र, प्रौढ़ और तना हुआ है। कविताएँ भी अब अधिक संश्लिष्ट व बहुआयामी हैं। सबसे बड़ी बात है कि कवि कहीं भी बहुत मुखर या वाचाल नहीं है। यह वो कवि है जिसने जीवन के सुख-दुख देखे हैं और लगभग निस्पृह भाव से उन्हें अंकित किया है। लेकिन वह हमेशा अबला की चीख़ सुनता है और अनेक धर्मों वाले घर की तलाश करता है। 'फ़र्क नहीं मिटा' तथा 'आकाश भी चकित है', जहाँ सेब गिर रहे हैं लगातार और कर्फ़्यू जारी है भयंकर त्रासद-बोध की कविताएँ हैं। नरेश अग्रवाल बहुत ख़ामोशी से जीवन के चक्रवातों को वाणी देते हैं। यह कवि अब सभी के समानान्तर सभी के आस-पास चलता और रहता है।\nइस संग्रह तक आते-आते नरेश अग्रवाल की भाषा सहज, बेधक और क्षिप्र हुई है। नये ब्योरों और बिम्बों से सम्पन्न यह भाषा कवि की साधना और तपस्या का सुफल है। इसका सर्वोत्तम प्रमाण है 'घाव' शीर्षक कविता जहाँ बैल और आदमी एक ही दुख और संघर्ष के भागीदार हैं। 'साक्षात्कार' भी एक विलक्षण कविता है और अपने प्रसार में बहुत व्यापक।\nनरेश अग्रवाल इस संग्रह के साथ समकालीन हिन्दी कविता की प्रथम नागरिकता के प्रबल दावेदार हैं। ये कविताएँ हमारे भावबोध में बहुत कुछ नया जोड़ती हैं और हमेशा हमारे साथ रहती हैं—हर काम में साथ देने को तैयार जैसे ऐसे कवि से भारतीय कविता नयी ऊँचाइयाँ हासिल करेगी, ऐसी आशा है।—अरुण कमल

नरेश अग्रवाल - 1 सितम्बर, 1960 को जमशेदपुर में जन्म। अब तक स्तरीय साहित्यिक कविताओं की 11 पुस्तकों का प्रकाशन, स्वरचित सुक्तियों पर 3 पुस्तकों, शिक्षा सम्बन्धित 4 पुस्तकों का प्रकाशन 'इंडिया टुडे' एवं 'आउटलुक' जैसी पत्रिकाओं में भी इनकी समीक्षाएँ एवं कविताएँ छपी हैं। देश की लगभग सारी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित। जैसे हंस, वागर्थ, आलोचना, परिकथा, जनसत्ता, कथन, कविकुंभ, किस्सा कोताह, आधारशिला मंतव्य, समय सुरभि अनंत, वर्तमान साहित्य, दोआबा, दस्तावेज़, नवनिकष, दैनिक जागरण, प्रभात ख़बर, बहुमत, ककसाड़, दैनिक भास्कर आदि। पिछले 9 वर्षों से लगातार 'मरुधर के स्वर' रंगीन पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं, जो आर्ट पेपर पर छपती है। 'हिन्दी सेवी सम्मान', 'समाज रत्न', 'सुरभि सम्मान', 'अक्षर कुंभ सम्मान', 'संकल्प साहित्य शिरोमणि सम्मान', 'जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान', 'झारखण्ड-बिहार प्रदेश माहेश्वरी सभा सम्मान', 'हिन्दी सेवी शताब्दी सम्मान'। देश की ख्याति प्राप्त संस्था बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना द्वारा महामहिम राज्यपाल के कर कमलों द्वारा दिया गया। यात्रा के बेहद शौक़ीन तथा अब तक 14 देशों की यात्रा कर चुके हैं। निजी पुस्तकालय में साहित्य एवं अन्य विषयों पर क़रीब 5000 पुस्तकें संग्रहीत।

नरेश अग्रवाल

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