महाकवि दाग़ ने अपना उपनाम 'दाग' भले ही रख लिया हो, मगर उनकी शायरी में भाँति-भाँति के उज्ज्वल रंगों की उपस्थिति देखते ही बनती है। पिछली लगभग डेढ़ शताब्दी से शायरी की दुनिया में उनकी उपस्थिति उन्हें जन-जन का शायर बनाये हुए शायरों के समकक्ष है। दाग़ देहलवी अपनी बेबाक प्रेमाभिव्यक्तियों के कारण पूरी शताब्दी पर छाये रहे और आज भी उनकी इश्किया शायरी जवान दिलों की धड़कन बनी हुई है। शायरी का शौकीन हो अथवा साहित्य से कोसों दूर सामान्य जीवन जीने वाला कोई इनसान जब भी उसके कानों में दाग़ के अश्आर पड़े हैं, अक्सर झूम-झूम गया है और दाग का नाम जाने बग़ैर उनके शेरों का मुरीद बन गया है।
डॉ गर्ग का जन्म 29 मई, 1937 को देहरादून में हुआ। हिन्दी में व्यंग्य-ग़ज़लें और इनका शोध-प्रबंध 'स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-कविता में व्यंग्य' चर्चित रहे। 'बाज़ार से गुज़रा हूं', 'दौरा अंतर्यामी का', 'क्या हो गया कबीरों को' और 'रिश्वत-विषवत' डॉ गर्ग की प्रमुख व्यंग्य-कृतियां हैं।
दाग़ देहलवीAdd a review
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