हिन्द स्वराज - \nमहात्मा गाँधी आज भी अपने दर्शन में सर्वस्पर्शी हैं। जनतन्त्र की पहचान भारतीय जन के रूप में गाँधी करते हैं। उसमें सब नागरिक एक समान हैं। देश और उसका जनतन्त्र भाषा, धर्म, जाति आदि में रहते हुए उससे ऊपर हैं। 'हिन्द स्वराज' की धारणा में उनका दर्शन न्याय, सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तों पर भी समान है। गाँधी मताधिकार से लेकर सामाजिक समरसता, आंशिक समानता, शिक्षा का अधिकार और ग़रीबी उन्मूलन के स्वदेशी उपायों पर विमर्श प्रस्तुत करते हैं। इन सारे बिन्दुओं पर गाँधी आत्मबल के मार्ग को प्राथमिकता देते हैं। इस मार्ग पर यान्त्रिकीकरण के ख़तरों के प्रति आगाह करते हुए गाँधी इस देश का सम्यक और विवेकसंगत रोडमैप देश के सामने रखते हैं।\nदिनकर जोशी आज सर्वाधिक प्रासंगिक 'हिन्द स्वराज' की अवधारणा की एक बार पुन: व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। यह किताब इक्कीसवीं सदी के लिए एक ज़रूरी पाठ है।
दिनकर जोशी - जन्म: 30 जून, 1936, भावनगर (गुजरात) में। दिनकर जोशी के अब तक 43 उपन्यास, 11 कहानी संग्रह, 10 सम्पादित पुस्तकें, महाभारत व रामायण विषयक 9 अध्ययन ग्रन्थ और लेख, प्रसंग चित्र, अन्य अनूदित पुस्तकों सहित लगभग 125 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। गुजरात राज्य सरकार के 5 पुरस्कार, गुजराती साहित्य परिषद का उमा-स्नेहरश्मि पारितोषिक तथा गुजरात थियोसोफ़िकल सोसायटी का मैडम ब्लेवेट्स्की अवार्ड से सम्मानित। प्रमुख कृतियाँ: 'प्रकाशनो पडछायो', 'प्रश्नों पर पूर्णविराम', 'श्याम एकवार आवोने आंगणे', 'अमृतयात्रा', 'द्वारका का सूर्यास्त' (उपन्यास); 'कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्' (अभ्यास ग्रन्थ)। गुजराती मंं प्रकाशनोपरान्त हिन्दी, मराठी, तेलुगु, तमिल, बांग्ला, मलयालम तथा अंग्रेज़ी, जर्मन आदि भाषाओं में अनूदित। '35 अप 36 डाउन' उपन्यास पर गुजराती में 'रमकडा' फ़िल्म निर्मित। आपके द्वारा सम्पादित सम्पूर्ण महाभारत के श्लोकों के गुजराती अनुवाद का 20 ग्रन्थों का सम्पुट अभी-अभी प्रकाशित हुआ है।
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