भाषा के मुख्य दो रूप हैं-उच्चरित और लिखित । पुस्तक में सर्वप्रथम हिंदी के उच्चरित रूप में ध्वनि-उत्पादन-प्रक्रिया के साथ ध्वनियों का सोदाहरण परिचय दिया गया है। इसके पश्चात लेखन की लघुतम इकाई वर्ण का विवेचन करते हुए उससे वृहत्तर इकाइयों-अक्षर-शब्द, पद और वाक्य की संरचना और प्रयोग का सैद्धांतिक और व्यावहारिक परिचय दिया गया है। हिंदी के उच्चरित और लिखित स्वरूप के परिचय के पश्चात ही मानकीकरण-विचार का मार्ग प्रशस्त होता है। डॉ. मिश्र ने हिंदी-मानकीकरण के पूर्वाँश में भाषा की लघुतम इकाई से लेकर पूर्ण सार्थक इकाई वाक्य की उच्चरित विविधता में एकरूपता लाने का उपयोगी मानकीकरण किया है। हिंदी लेखन के मानकीकरण में नागरी लिपि की वैज्ञानिकता के साथ प्रयोग-शिथिलता को वैज्ञानिक रूप में अपनाने की दिशाओं का संकेत किया है। मानक लेखन में वर्तनी की विशेष भूमिका होती है। पुस्तक की वर्तनी में शब्द-संदर्भ में अनुस्वार, अनुनासिकता, आगम और लोप आदि का विवेचन विशेष उपयोगी है। निश्चय ही पुस्तक के मानकीकृत रूप में अपनाने के लिए पठनीय और संग्रहणीय है। -डॉ. जय प्रकाश पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़\n\nडॉ. नरेश मिश्र सुधी भाषाविद् हैं। आपकी भाषा और भाषाविज्ञान पर दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। डॉ. मिश्र का प्रस्तुत ग्रंथ हिंदी का मानकीकरण : उच्चारण एवं लेखन समसामयिक एवं गंभीर चिंतन का परिणाम है। आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का उद्भव समृद्ध और पूर्ण वैज्ञानिक संस्कृत भाषा से हुआ है। संस्कृत से क्रमशः विकसित पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में संरचनात्मक शिथिलता बढ़ती गयी है। अपभ्रंश से ही आधुनिक भारतीय भाषाओं के रूप सामने आये हैं। हिंदी में सतत सुधार प्रक्रिया चलती रही है। इक्कीसवीं शताब्दी में मानकीकरण प्रक्रिया प्रारंभ हुई है। डॉ. मिश्र ने हिंदी लेखन और उच्चारण में उभर रही विविधता और जटिलता में एकरूपता, स्पष्टता और बोधगम्यता के लिए इस ग्रंथ की रचना की है। ग्रंथ की सरल भाषा में सूत्रात्मक विवेचन विशेष उल्लेखनीय है। इसमें हिंदी भाषा की विभिन्न इकाइयों-ध्वनि, अक्षर, शब्द-वर्तनी, संगम सेतु के साथ नागरी लिपि की वैज्ञानिकता और मानकीकरण पर अनुप्रेरक विचार प्रस्तुत किया गया है।\nमेरा दृढ़ विश्वास है कि यह ग्रंथ-रत्न विद्यार्थियों, शोधार्थियों और भाषा-प्रेमियों के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा।\n- डॉ. सुरेंद्र कुमार\nआचार्य एवं अध्यक्ष संस्कृत विभाग\nमहर्षि दयानंद विश्वविद्यालय \nरोहतक, हरियाणा (भारत)
प्रो. नरेश मिश्र – जन्म : 1 जनवरी, 1951, महमुदपुर, सुलतानपुर (उ.प्र.) । शिक्षा : एम.ए. (हिंदी-संस्कृत), पत्रकारिता डिप्लोमा, पोस्ट एम.ए. भाषाविज्ञान डिप्लोमा, साहित्यमहोपाध्याय अध्यापन अनुभव : 42 वर्ष (प्रोफेसर 16 वर्ष) प्रशासनिक अनुभव : अध्यक्ष, हिंदी विभाग, ललित कला विभाग; डीन, मानविकी, शिक्षा संकाय, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय। अध्यक्ष, हिंदी विभाग, परीक्षा नियंत्रक, प्रभारी कुलपति, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय। सम्मान-पुरस्कार : राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सम्मान, हिंदी-संस्कृत पुस्तकें, शोध आलेख, कहानी, लघुकथा पुरस्कृत। प्रकाशन : नागरी लिपि और उसकी समस्याएँ, हिंदी शब्द समूह का विकास, भाषा और हिंदी भाषा का इतिहास, रामनरेश त्रिपाठी का शब्द भंडार, भाषाविज्ञान और मानक हिंदी, नागरी लिपि, अनुप्रयुक्त भाषा चिंतन (पुरस्कृत), प्रयोजनमूलक हिंदी और काव्यांग, हिंदी भाषा और साहित्य, मीडिया लेखन, अलंकार दर्पण, स्मृति लतिकाएँ, भाषाविज्ञान और हिंदी भाषा, नरेश मित्र रचनावली (11 खंड) प्रकाशित 2015 ई., कालिदासीय नाटकेषु समाजिकम् जीवनम् (संस्कृत पुरस्कृत), घर से बाहर तक (कहानी संग्रह), प्रकाश पर्व (लघुकथा संग्रह), जब पीपल रो पड़ा (लघुकथा संग्रह), हिंदी काव्य संवेदना के शिखर : भक्तिकालीन संदर्भ, हिंदी काव्य संवेदना के शिखर : आधुनिककालीन संदर्भ, महाशिवरात्रि से कार्निवाल तक (यात्रा वृत्तांत), भक्तिकालीन काव्य : वैचारिक पृष्ठभूमि, भाषाविद् डॉ. भोलानाथ तिवारी का साहित्य सौरभ, मानक हिंदी और हरियाणवी : व्यतिरेकी अध्ययन, भाषा और हिंदी भाषा : वैज्ञानिक और व्यावहारिक संदर्भ, भाषा और भाषाविज्ञान, भाषा और लिपि। संप्रति : 960, सेक्टर-1, रोहतक, हरियाणा (भारत) मो.: 9896295552
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