हिन्दी के आंचलिक उपन्यास एवं उपन्यासकार - \nकिसी भी देश के सभी अंचल एक दूसरे से अभिन्न होते हुए भी बहुत से अर्थों में अलग-अलग हैं। यदि अंचल की तुलना की जाय तो प्रत्येक अंचल की अपनी विशेषताएँ हैं। इसका कारण यह है कि कोई भी अंचल एक विशिष्ट भौगोलिक पर्यावरण में स्थित होता है। भौगोलिक सीमाओं में बँधे अंचल अपनी धरती को विस्तृत मैदान, झाड़, पहाड़, नदी-नाले, झरने, सरोवर इत्यादि का पूर्ण विवरण देते हैं। भौगोलिक संस्कृति, ऐतिहासिक परम्परा व वैज्ञानिक माध्यम के साथ ही 'अंचल' को एक ठोस व्यक्तित्व प्राप्त होता है।\nसाहित्य समीक्षक कुमार विमल के शब्दों में, डॉ. फणीश सिंह का यह समीक्षात्मक प्रयास आंचलिक उपन्यासों के प्रति किसी आग्रही दृष्टिकोण से प्रेरित नहीं है। आंचलिक उपन्यासों की उपलब्धियों, ख़ासकर संक्रमणशील परिवेश का साक्ष्य बनने की शक्ति का इसमें उद्घाटन हुआ है। इतना ही नहीं, आंचलिक उपन्यासों के समग्र सोच की सीमाएँ भी उभरकर इसमें सामने आयी हैं। निःसन्देह आंचलिक उपन्यासों के पाठकों को यह समीक्षा कृति बहुत कुछ नयी और विचारोत्तोजक सामग्री देने में सफल होगी।
डॉ. फणीश सिंह - जन्म: 15 अगस्त, 1941 को ग्राम नरेन्द्रपुर, ज़िला सिवान (बिहार) में। एम.ए. तथा बी.एल. करने के बाद पटना उच्च न्यायालय में 1967 में वकालत आरम्भ। गोर्की और प्रेमचन्द के कृतित्व और जीवन-दृष्टिकोणों की सदृश्यता विषय पर पीएच.डी. की उपाधि। हिन्दी साहित्य के इतिहास और विभिन्न विदेशी भाषाओं की कहानियों का विशेष अध्ययन। पिछले तीन वर्षों से दक्षिणपूर्व एशिया पर भारतीय संस्कृति के प्रभाव पर अध्ययनरत। 1969 से हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना के स्थायी समिति के सदस्य। विश्व शान्ति परिषद् के विभिन्न कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए मास्को, डेनमार्क, स्वीडन, इस्टोनिया, पोलैंड, जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, फ्रांस, इटली, ऑस्ट्रिया, इंग्लैंड, अमेरिका आदि अनेक देशों की यात्राएँ। 2006 में अखिल भारतीय शान्ति एवं एकजुटता संगठन के प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य के रूप में चीन की यात्रा। प्रकाशन: हिन्दी साहित्य के विभिन्न विषयों एवं स्वाधीनता आन्दोलन पर अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित। पहली पुस्तक 'प्रेमचन्द एवं गोर्की का कथा-साहित्य : एक अध्ययन' वर्ष 2000 में प्रकाशित।
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