हिन्दी साहित्यशास्त्र - \nक्या हिन्दी का कोई अपना साहित्यशास्त्र भी है? प्रश्न जितना ही दिलचस्प है, उतना ही गहन भी। इस प्रश्न का उत्तर 'हिन्दी साहित्यशास्त्र' नामक यह पुस्तक बहुत ही विदग्धता से देती है। साहित्यशास्त्र का यह मतलब कतई नहीं है कि वह कुछ शास्त्रकारों या सिद्धान्तकारों द्वारा तैयार की गयी एक निर्देशिका हो, जिसे साहित्य-विशेष पर आरोपित कर दिया जाए। हिन्दी का साहित्य अपने आरम्भ-काल से ही जितना गतिशील और वैविध्यपूर्ण रहा है, उसकी कोई शास्त्रीय निर्देशिका तैयार भी नहीं की जा सकती। लेकिन सर्वथा स्वाभाविक रूप से वह साहित्य साहित्य के शास्त्रीय वा सौन्दर्यात्मक प्रतिमानों की भी रचना करता रहा है अपने सृजन के द्वारा भी और चिन्तन के द्वारा भी। निश्चय ही यह रचना दूसरे आगे-पीछे के साहित्यों से अलग रहकर और सिर्फ़ अपने तक सीमित रहकर नहीं की गयी, लेकिन वह हमेशा अपनी भूमि पर की गयी है, यह तय है।\nसर्वप्रथम हमें तुलसीदास में ही एक मुक़म्मल नये काव्यशास्त्र की रचना के संकेत मिलते हैं, फिर आधुनिक काल में जब गद्य-माध्यम की सुविधा प्राप्त हुई और गद्य की अनेक विधाओं में भी साहित्य-सृजन किया जाने लगा, तो उसमें स्वाभाविक रूप से साहित्य के अपने प्रतिमान निर्मित और विकसित होने लगे। कहने की आवश्यकता नहीं कि उसमें एक तरफ भातेन्दु, प्रेमचन्द, प्रसाद, निराला, जैनेन्द्र, अज्ञेय और मुक्तिबोध-जैसे रचनाकारों का योगदान है, तो दूसरी तरफ़ रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा और नामवर सिंह जैसे आलोचकों का। इनके सृजन और चिन्तन से हिन्दी का जो साहित्यशास्त्र विकसित हुआ है, वह उसके साहित्य की तरफ ही बहुवर्णी और बहुआयामी है। इस कारण उसका अध्ययन तो किया जा सकता है, हिन्दी साहित्य और उसके चिन्तन को समझने के लिए और उससे नवोन्मेष प्राप्त करने के लिए, पर किसी रूढ़ और जड़ शास्त्र की तरह उसका उपयोग नहीं किया जा सकता, जो साहित्य का नवीन मार्ग खोलने की जगह उसके पैरों में साँकल बन जाये।
नन्दकिशोर नवल - जन्म : 2 सितम्बर, 1937 (चाँदपुरा, हाजीपुर,वैशाली)। शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी), पीएच.डी. ('निराला का काव्य-विकास' )। आजीविका : पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन कार्य (अब अवकाश प्राप्त)। फिलहाल स्वतन्त्र लेखन। मौलिक कृतियाँ : कविता की मुक्ति, हिन्दी आलोचना का विकाश, प्रेमचन्द का सौन्दर्यशास्त्र, महावीरप्रसाद द्विवेदी, शब्द जहाँ सक्रिय हैं, यथा-प्रसंग, समकालीन काव्य-यात्रा, मुक्तिबोध : ज्ञान और संवेदना, निराला और मुक्तिबोध : चार लम्बी कविताएँ, दृश्यालेख, मुक्तिबोध, रचना का पक्ष, निराला : कृति से साक्षात्कार (दो खण्ड), शताब्दी की कविता, निराला काव्य की छवियाँ, पार्श्वच्छवि, कविता के आर-पार। सम्पादित कृतियाँ : असंकलित कविताएँ : निराला, निराला रचनावली (आठ खण्ड), रुद्र समग्र, हर अक्षर है टुकड़ा दिल का, काव्य समग्र : रामजीवन शर्मा 'जीवन', राकेश समग्र, रामावतार शर्मा : प्रतिनिधि संकलन, मैं पढ़ा जा चुका पत्र, अँधरे में ध्वनियों के बुलबुल, कामायनी-परिशीलन, मुक्तिबोध कवि-छवि, निराला : कवि-छवि, अन्त-अनन्त, मैथिलीशरण संचयिता, नामवर संचयिता, छायान्तर।
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