हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज - \n'व्याकरण' अपने प्रकट स्वरूप में एककालिक (स्थिरवत् प्रतीयमान) भाषा का विश्लेषण है, जो भाषाकृति-परक है। किन्तु, वह पूर्णता व संगति तभी पाता है जब ऐतिहासिक-तुलनात्मक भाषावैज्ञानिक प्रक्रियाओं तथा अर्थ विचार की धारणाओं के भीतर से निकल कर आये। यह बात कारक, काल, वाच्य, समास जैसी संकल्पनाओं के साथ विशेषतः और पूरे व्याकरण पर सामान्यतः लागू होती है। फिर भी, व्याकरण है तो प्रधानतः आकृतिपरक अवधारणा ही।\nहिन्दी व्याकरण-पुस्तकों के निर्माण की अब तक जो लोकप्रिय शैली रही है, वह अंग्रेज़ी ग्रैमर से अभिभूत रहे पण्डित कामताप्रसाद गुरु के प्रभामण्डल से बाहर निकलकर, कुछ नया सोचने में असमर्थ रही है। वैसे पण्डित किशोरीदास वाजपेयी और उनके भी पूर्वज पण्डित रामावतार शर्मा ने हिन्दी व्याकरण को अधिक स्वस्थ और तर्कसंगत पथ प्रदान करने के अथक प्रयत्न किये, किन्तु उस पथ पर चलना लेखक को रास नहीं आया। लेखक का स्पष्ट विचार है कि हिन्दी भाषा को उसके मूल विकास-परिवेश [वेदभाषा-पालि-प्राकृत-अपभ्रंश-अवहट्ट-हिन्दी] में समझना चाहिए; हिन्दी भाषा के विश्लेषण को भी भारतीय भाषा दर्शन का संवादी होना चाहिए।\n'हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज' पुस्तक का लेखक भारतीय भाषा दर्शन से उपलब्ध व्याकरणिक संकल्पनाओं पद, प्रकृति, प्रातिपदिक, धातु, प्रत्यय, विभक्ति, कारक, काल, समास, सन्धि, उपसर्ग आदि को मूलार्थ में हिन्दी व्याकरण में विनियुक्त या अन्वेषित करने को प्रतिबद्ध रहा है।\nइस विषय पर हिन्दी में अब तक प्रकाशित पुस्तकों में विशेष महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कृति।
रवीन्द्र कुमार पाठक - जन्म: 16 सितम्बर, 1974। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी)। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से 'हिन्दी के प्रमुख व्याकरणों का समीक्षात्मक अनुशीलन' विषय पर पीएच.डी.। प्रकाशित कृति: 'जनसंख्या-समस्या के स्त्री-पाठ के रास्ते' (आलेख)। 'नवनीत', 'माध्यम', 'नया ज्ञानादेय', 'हंस', 'इन्द्रप्रस्थ भारती', 'वर्तमान साहित्य', 'गवेषणा' आदि देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित। एन.सी.ई.आर.टी. (दिल्ली) की व्याकरण-पुस्तक-निर्माण समिति के सदस्य के रूप में (वर्ष 2009 में) सहयोग।
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