HINDU DHARM : JEEVAN MEIN SANATAN KI KHOJ

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हिन्दू धर्म: जीवन में सनातन की खोज – विद्या निवास मिश्रा\n\nहिन्दू धर्म पर इतनी पुस्तकों के होते हुए भी एक और पुस्तक लिखने का उद्देश्य मेरे सामने यही था कि हम अपने को आज के विश्व के सन्दर्भ में फिर जाँचें, इसलिए भी जाँचें कि निरन्तर अपने धर्म को जाँचते रहना इस धर्म की पहली माँग है। हिन्दू धर्म दुनिया में फैले, दूसरों को आलोक दे, इसकी चिन्ता न करके हम केवल यह चिन्ता कर सकें कि हम इससे क्यों नहीं आलोकित हो रहे हैं, हम क्यों दूसरों का मुँह जोह रहे हैं कि वे हिन्दू धर्म की तारीफ़ करें तो हम अपनी पीठ ठोंकें, हम क्यों सतही और कभी-कभी द्वेष या आत्महीनता से प्रेरित आलोचनाओं से घबराकर अपने धर्म से उदासीन बने हुए हैं, हम क्यों नहीं अपने हाथ से, अपनी कुल्हाड़ी से अपने निरन्तर परिवर्तनशील धर्म की सूखी डालें काटने के लिए क़दम बढ़ाते हैं, दूसरों द्वारा काटी गयी फल-फूल से लदी डाल के सूखे हुए रूप को धर्म मानकर क्यों कुण्ठित हैं- इसी भाव को उकसाने के लिए यह छोटा-सा संकल्प मैंने लिया।\n\nहिन्दू धर्म का महत्त्व मेरे लिए इसी से है कि वह चरम मानव-मूल्य स्वाधीनता की खोज के लिए एक नक़्शा प्रस्तुत करता है, इस नक़्शे के अनुसार चलकर अन्वेषण करने वाला इस नक़्शे में तरमीम करता चलता है, साथ ही वह स्वयं नक़्शा बनता चलता है। हिन्दू धर्म इस अन्वेषण को रसमय भी बनाता है, उसकी भक्ति भोग- विमुख भोग और काम-विजयी काम का आस्वादन कराती है।\n– भूमिका से

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