इकि गा ई एक पा रंपरि क जा पा नी अवधा रणा है, जी वन जी ने की कला सि खा ती है। यह \nपुस्तक आपकी इकि गा ई को खो जने, आपके उद्देश्य या जुनून को पहचा नने और इस ज्ञा न \nका उपयो ग करके अपने जी वन में वृहत्तर खुशी हा सि ल करने के बा रे में है।है यह जरूरी \nनहीं है कि आपकी इकि गा ई को ई बड़ी महत्वा कां क्षा या जी वन का को ई अति महा न उद्देश्य \nहो : यह कुछ सरल और सा दगी भरा हो सकता है,है जैसे अपने बगी चे की देखदे भा ल करना \nया अपने कुत्ते को घुमा ना । जा पा न में पली -बढ़ी हो ने के का रण, युका री मि त्सुहा शी स्वयं \nही इस बा त को समझती हैं कि जा पा नी लो गों के लि ए इकि गा ई का क्या मतलब है।है यह \nपुस्तक आपको अपने जी वन की हर छो टी बा त पर ध्या न देनेदेनेएवं रो जमर्रा के क्षणों का \nमहत्व समझने के लि ए प्रो त्सा हि त करती है क्यों कि आप अपनी खुद की इकि गा ई को \nपहचा नना सी ख रहे हो ते हैं।हैं इस पुस्तक में एथली टों से लेकर लेखकों और व्यवसा यि यों \nतक अपनी इकि गा ई को सा झा करने वा ले वि भि न्न व्यक्ति यों के केस अध्ययन शा मि ल हैं।हैं \nअपने आश्चर्यजनक रूप से सरल दर्शन और मुक्ति दा यक अवधा रणा ओं के सा थ, यह \nखूबसूरती से प्रस्तुत पुस्तक एक मा र्गदर्शक हो गी जि से आप बा र-बा र पढ़ना चा हेंगेहेंगे।
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Yukari MitsuhashiAdd a review
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