प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण, हिन्दी समीक्षक और साहित्यकार के रूप में करीबन चार दशकों से सुपरिचित हैं और विख्यात भी। उनके अभिनन्दन में विचार-विमर्श केन्द्रित ग्रन्थ का प्रकाशन साहित्य जगत की बड़ी उपलब्धि कहनी होगी। वर्तमान समय के शीर्षस्थ साहित्यकारों, समीक्षकों और चिन्तकों के साथ-साथ प्रौढ़ और युवा शोधकर्ताओं के सवासौ से अधिक लेखों से सम्पन्न यह ग्रन्थ एक ओर इक्कीसवीं सदी के साहित्यिक विमर्श को, तो दूसरी ओर प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण के गरिमामयी व्यक्तित्व एवं कृतित्व को साकार करता है।\n\nइस वैचारिक ग्रन्थ के प्रमुख तीन वैशिष्ट्य कहने होंगे- इसमें विमर्श इक्कीस हैं, सदी इक्कीसवीं है और अभिनन्दित लेखक का षष्ठाब्दी वर्ष इक्कीसवीं सदी का इक्कीसवाँ वर्ष है। जिनका सारा जीवन साहित्य साधना के लिए समर्पित रहा, हज़ारों छात्रों, शोधकर्ताओं, लेखकों को राह दिखाई, उनकी षष्ठाब्दीपूर्ति के अवसर पर ग्रन्थ- सम्पादन सार्थक कहना होगा। प्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण का लेखन साहित्य तथा भाषा विमर्श केन्द्रित होने के कारण इसमें जनवादी विमर्श से लेकर लिव-इन-रिलेशनशिप विमर्श, भाषा विमर्श तक पचास लेख अठारह खण्डों में और अर्जुन जी से सम्बन्धित साहित्य विमर्श, व्यक्ति विमर्श तथा कृति विमर्श पर तीन खण्डों में संकलित हैं।\n\nप्रो. (डॉ.) अर्जुन चव्हाण अभिनन्दन ग्रन्थ हेतु आवाहन करने पर हज़ारों पन्नों की सामग्री देश तथा विदेश से प्राप्त हुई। सबको स्थान देना सम्भव न था। उनमें से छाँटने के बावजूद ग्रन्थ बृहदाकार बना। लेकिन इनमें कहीं पर भी पुनरावृत्ति नहीं मिलेगी। एक विद्वान व्यक्तित्व के कितने पहलू हो सकते हैं और कितनी नज़रों से अभिनन्दित लेखक को देखा जा सकता है। इसका अद्भुत रूप देखने को मिलता है।\n\nइस ग्रन्थ में विविध विचारधाराओं का संगम है, न अतिआग्रह न दुराग्रह। विचार-विमर्श का वैविध्य और प्रतिबद्ध लेखक के व्यक्तित्व का सान्निध्य यही इस ग्रन्थ की ताकत और खासियत है। विश्वास है कि अत्यन्त श्रमसाध्य यह ग्रन्थ समाज, राष्ट्र और नयी पीढ़ी के लिए दिशा और प्रेरणादायी सिद्ध होगा।
डॉ. मनोहर भंडारेजन्म : बोरगाँव, तहसील लोहा, जिला-नांदेड (महा.)शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), एम. फिल., पीएच.डी., सेटशोधनिर्देशक : स्वा.रा.ती.म. विश्वविद्यालय, नांदेड-1 छात्र पीएच.डी. उपाधि प्राप्त, 3 छात्र कार्यरत ।ग्रन्थ : करीब दस ग्रन्थ प्रकाशित। कथाकार मार्कण्डेय, सत्तरोत्तर ग्राम-केन्द्रित उपन्यासों का मूल्यांकन, कबीरवाणी, मराठवाडा की हिन्दी का भाषावैज्ञानिक अध्ययन, प्रभुराव कंबळीबाबाः व्यक्ती आणि कार्य (मराठी), दलित साहित्यः समग्र परिदृश्य (सम्पादन), खुरुप सीमालढा आणि समीक्षा (सह सम्पादन), बसवदर्शन (सह सम्पादन) ।शोध परियोजनाएँ : मराठवाडा की हिन्दी का भाषावैज्ञानिक अध्ययन (यू.जी.सी. द्वारा लघु शोध परियोजना पूर्ण), हिन्दी वेब पत्रिकाओं में प्रकाशित साहित्य का अनुशीलन (स्वा.रा.ती.म. विश्वविद्यालय, नांदेड द्वारा लघु शोध परियोजना कार्यरत ) ।शोधालेख : युद्धरत आम आदमी, बयान, द्विभाषी राष्ट्रसेवक, समन्वय पश्चिम, शोध दिशा जैसी पत्रिकाओं में तीस से अधिक शोधालेख प्रकाशित ।पाठ्यक्रम लेखन: स्वा.रा.ती.म. विश्वविद्यालय नांदेड (दूरशिक्षण) - एम.ए. (हिन्दी) तथा विभिन्न आलेखों का अनुवाद |अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सक्रिय सहभाग ।सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग, श्री हावगीस्वामी महाविद्यालय, उदगीर, ज़िला लातूर (महा.) - 413517मो. : 8888001651ईमेल : dr.bhandaremanohar@gmail.comवेबसाइट: sahityasanvadmanohar.com
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