जहाँआरा एक ख़्वाब, एक हक़ीक़त -\n\nशाहजहाँ का शासन मुग़ल काल का स्वर्ण युग कहा जाता है और से हरम असली / खरा सोना थी मुग़ल शहज़ादी जहाँआरा। उसने अपनी माँ के बाद न केवल पिता को सँभाला बल्कि अपने हुनर प्रबन्धन से लेकर कारख़ानों के उत्पादन को बढ़ाया। उसने अगर एक तरफ सियासत को समझा तो वहीं सूफ़ीवाद को भी जिया । उसने झंझावातों का सामना किया तो पिता और प्रिय भाई दारा के ख़िलाफ़ हुए भाइयों को समझाने का अन्त तक प्रयास किया।\n\nबन्दी पिता की अन्त तक सेवा की और फिर अपनी कार्यकुशलता, ईमानदारी के चलते छोटे भाई औरंगज़ेब के साथ भी मल्लिका-ए-जहाँ का पद दुबारा सँभाला ।
प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी - प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी का जन्म दिसम्बर, 1955 को इन्दौर (म.प्र.) में हुआ था। शिक्षा इलाहाबाद में हुई; उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय-बी.ए. 1976, एम.ए. 1978 तथा डी. फिल. 1990 । जनवरी 1980 से अध्यापन । भूतपूर्व विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग एवं अध्यक्ष, कला संकाय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय । प्रकाशित पुस्तकें : इतिहास के सन्दर्भ ग्रन्थ 10; इनमें से दो, मध्यकालीन इतिहास के स्रोत (2003) तथा मध्यकालीन भारत में राज्य एवं राजनीति (2005) पर उ.प्र. हिन्दी संस्थान का आचार्य नरेन्द्र देव पुरस्कार 2003 एवं 2005 में। कविता संकलन - 02, ऐतिहासिक कहानियों के संग्रह- 03; ऐतिहासिक उपन्यास (मुग़ल शहजादा खुसरू ) - 01: अन्य -02; शोध पत्र 60 तथा प्रकाशित लेख 60 | अन्य कृतियाँ : मुग़ल शहज़ादा खुसरू (ऐतिहासिक उपन्यास, 2016), दो सुल्तान, दो बादशाह (लम्बी कहानियों का संकलन, 2016), कुम्भ : ऐतिहासिक वांग्मय (2019)।
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