जलतरंग -\nसम्भवतः यह हिन्दी का पहला ऐसा उपन्यास है जिसके आख्यान के केन्द्र में भारतीय शास्त्रीय संगीत की पूरी परम्परा अपने अनेक वादी, संवादी और विवादी स्वरों के साथ मौजूद है। भारतीय इतिहास के साथ संगीत में आये परिवर्तनों और संगीत के नवोन्मेष के बीच आन्तरिक रिश्तों की पड़ताल भी सन्तोष करते चलते हैं।\nउपन्यास के अध्यायों का विभाजन—आलाप, जोड़, विलम्बित द्रुत और झाला में किया गया है। यह विभाजन इसकी संरचना और अध्यायों की गद्य गति को भी एक हद तक तय करता है। उपन्यास का एक बड़ा हिस्सा संगीत और एक बहुत भीतरी तल पर चलते प्रेम के बीच संवादी स्वर पर चलती प्रेम कथा भी है। देवाशीष और स्मृति के बीच यह जुगलबन्दी सिर्फ़ अपने-अपने साज़ पर बजते राग तक सीमित नहीं है, कहीं वह राग से बाहर आकर सम्बन्धों तक अपना विस्तार कर लेती है। वस्तुत: देवाशीष ने जान लिया है कि संगीत कोई गणित नहीं है। राग का सिर्फ़ स्ट्रक्चर समझ लेना ही काफ़ी नहीं है, भाव के पीछे छिपे रस तक पहुँचने के लिए राग में डूबना ज़रूरी है। स्मृति इसे पहले से ही जानती है। संगीत की कई दुर्लभ और अलक्षित जानकारियों के साथ ही उपन्यास का बड़ा हिस्सा वस्तुतः शास्त्रीय संगीत के भीतर उतरने की तैयारी की यात्रा है।\nउपन्यास का अन्तिम हिस्सा संगीत और शोर के बीच का विवादी स्वर है। यह शोर एक तरह का नहीं है। यह शोर हमारी विकास की ग़लत अवधारणाओं, शिक्षा और पूरे सामाजिक-राजनीतिक विद्रूप से पैदा हो रहा शोर है क्योंकि एक सुर से दूसरे सुर के बीच जाने का पुल कहीं टूट गया है और इसलिए संगीत की जगह शोर पैदा हो रहा है।\nशास्त्रीय संगीत को आख्यान के केन्द्र में रख कर उपन्यास लिखना एक जोख़िम भरा काम है। सन्तोष ने इसे बहुत सलीके से अंजाम दिया है और बिना समझौता किये उसकी रोचकता को बनाये रखा है। अपने पूरे कथा विन्यास में यह उपन्यास विशिष्ट भी है और पठनीय भी। -राजेश जोशी
सन्तोष चौबे - कवि, कथाकार, उपन्यासकार। साहित्य तथा जन विज्ञान और साक्षरता आन्दोलनों में पिछले तीस वर्षों से सक्रिय। वर्तमान में डॉ. सी.वी. रामन् विश्वविद्यालय तथा आईसेक्ट विश्वविद्यालय के चांसलर तथा आईसेक्ट नेटवर्क, राज्य संसाधन केन्द्र एवं वनमाली सृजन पीठ के अध्यक्ष हैं। कृतियाँ : हल्के रंग की कमीज़, रेस्त्राँ में दोपहर, प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानी), राग केदार, क्या पता कॉमरेड मोहन (उपन्यास), कहीं और सच होंगे सपने, कोना धरती का, इस अ-कवि समय में (कविता)। लेखक और प्रतिबद्धता, मॉस्को डायरी (अनुवाद)। कला की संगत, अपने समय में (कला)। सम्पादन : बनमाली समग्र, आख्यान का आन्तरिक संकट, उपन्यास की नयी परम्परा का सम्पादन। लम्बे समय से 'उद्भावना' के सम्पादक मण्डल से सम्बद्ध। सम्प्रति पत्रिका 'समावर्तन' के सम्पादक मण्डल में 'रंग संवाद' का सम्पादन। पुस्तक 'कम्प्यूटर : एक परिचय’ को भारत सरकार का 'मेघनाद साहा' पुरस्कार। 'कम्प्यूटर की दुनिया' एवं 'कम्प्यूटर आपके लिए श्रृंखला में छ: अन्य पुस्तकों का लेखन। विज्ञान केन्द्रित बीस पुस्तकों का सम्पादन। हिन्दी पत्रिका 'इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए' का सम्पादन। कई विज्ञान नाटकों सहित 'गैलीलियो' का हिन्दी में अनुवाद तथा मंचन । पुरस्कार/सम्मान: दुष्यन्त कुमार पुरस्कार, राष्ट्रीय विज्ञान प्रचार पुरस्कार, डॉ. शंकर दयाल शर्मा पुरस्कार, इंडियन इनोवेशन अवॉर्ड तथा नैसकॉम आई.टी. इनोवेशन अवॉर्ड एवं एशियन फोरम का प्रतिष्ठित अवॉर्ड प्राप्त। प्रतिष्ठित श्वॉब फाउंडेशन अवॉर्ड तथा सीनियर अशोक फ़ेलोशिप ।
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