जो दिखता नहीं - \nजीवन की विकट दुरूहताओं की अपने अनोखे कथा शिल्प से मनोवैज्ञानिक पड़ताल राजेन्द्र दानी की सृजनात्मकता का निकष है।\nपिछले लगभग चालीस वर्षों से कथा-लेखन में अनवरत सक्रिय शीर्षस्थ कथाकार राजेन्द्र दानी का यह पहला उपन्यास 'जो दिखता नहीं' के केन्द्र में एक ऐसा निम्न मध्यम वर्गीय परिवार है जो पिछले तीन दशको में अपने तमाम संघर्षों के बलबूते अपनी विपन्नता, अपने अभाव, अपने वर्गीय तनाव, अपने सन्त्रास और अपनी तमाम तरह की निराशाओं से कथित रूप से उबर तो गया पर नये और उन्नत दर्जे में पहुँच जाने के बाद उसे पता भी न चला कि कब एक अदृश्य संक्रमण के बाद उसने भव्यता और सम्पन्नता की लालसा में एक रसहीन और प्राणहीन जीवन को अपना लिया है, जहाँ एक नयी अर्थहीनता की शुरुआत हो रही है, जहाँ कथित शिखर में निहित एक बीहड़ ढलान है और जहाँ शेष जीवन की अस्मिता भयावह रहस्यमयता के दुर्दमनीय शिकंजे में बुरी तरह फँस चुकी है।\nअपने इस आख्यान में राजेन्द्र दानी ने न केवल इस काल विशेष में अवतरित भूमण्डलीकरण और उदारीकरण के दौर में चिन्हित इन भीषण, भयावह जीवन स्थितियों के नेपथ्य में निहित अदृश्य कारकों की शिनाख़्त की है, बल्कि उसे अपने रचना कौशल से सम्प्रेषणीय और पठनीय भी बनाया है।
राजेन्द्र दानी - जन्म: 5 नवम्बर, 1953 को राजनांदगाँव (छ.ग.) में। शिक्षा: जबलपुर विश्ववविद्यालय से जीव विज्ञान में स्नातक एवं इतिहास में उच्च शिक्षा। लम्बे समय तक देश की विख्यात नाट्य संस्था 'विवेचना' में रंगकर्म में सक्रिय। पिछली शताब्दी के आठवें दशक के उत्तरार्ध में कहानी लेखन प्रारम्भ। 1978 में पहली कहानी का प्रकाशन। म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ के अनेक पदों पर रहते हुए निरन्तर देश की समस्त महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में कहानियाँ व लेखादि प्रकाशित। अब तक दस कहानी-संग्रह एवं एक उपन्यास प्रकाशित। विभिन्न सृजनात्मक लेखन पर समीक्षाएँ प्रकाशित। अनेक कहानियों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद। पुरस्कार म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार, गायत्री कथा सम्मान तथा म.प्र. लेखक संघ से सम्मानित। म.प्र. राज्य विद्युत मण्डल की सेवावधि में विशिष्ट हिन्दी सेवा सम्मान से विभूषित।
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