पुलिसवाले ने अपनी दकनी उर्दू में कहा, ‘‘आप लोकां बड़े ऊँचे हाकिमान हैं तो इस प्राइवेट कार में क्या करता मियाँ? पाइलट लोकां तो सरकारी गाड़ी में तकरीबन घंटा भर पहले गए। अब जरा तकलीफ करके नीचे उतर आओ। तुम्हारी पूरी दास्तान फुरसत से थाने में सुनेंगे।’’ मैंने बहुत समझाया, पर बात इस मुद्दे पर खत्म हुई कि मैं जो अपने को प्रेसिडेंट साहेब का पायलट बता रहा था, अपना आई.डी. कार्ड भी नहीं दिखा पा रहा था। फिर उसने भाई साहेब से पूछा, ‘‘और हजरत, आप तो जरूर प्राइम मिनिस्टर साहेब के खासुलखास ड्राइवर होंगे?’’ मैंने आवाज ऊँची करके कहा, ‘‘अपने सीनियर ऑफिसर से तुरंत वॉकी-टॉकी पर बात कराइए, वरना मेरी नौकरी तो जाएगी, पर आपकी भी बचेगी नहीं।’’ नतीजा उलटा निकला। त्योरियाँ चढ़ाकर वह बोला, ‘‘अरे, मेरे को धमकी देते? जाने दो प्रेसिडेंट साहेब को, फिर मैं देखता मियाँ कि तुम फाख्ता उड़ाते कि हवाई जहाज।’’ जीवन और मृत्यु के खेल से गुजर जाने के बाद इस उड़ान का अंत भी सदा की तरह सकुशल रूप से हो गया। राष्ट्रपति महोदय के जाने के बाद हमारे कप्तान ने पीठ ठोंकी। मैंने पूछा, ‘‘सर, क्या ईनाम दे रहे हैं आप मुझको?’’ अपनी घनी मूँछों के नीचे से मुसकराते हुए उन्होंने कहा, ‘‘बस किसी को बताऊँगा नहीं कि महामहिम राष्ट्रपतिजी हैदराबाद एयरपोर्ट पर खड़े होकर आज महामहिम फ्लाइट लेफ्टिनेंट वर्मा की प्रतीक्षा करने के दंड से बच गए।’’ —इसी उपन्यास से
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