ज़ुबैदा उपन्यास में दिल्ली की दो त्रासदियों के बीच की कथा है, जो एक स्त्री की वेदना और संघर्ष को केंद्र में रखकर लिखी गयी है। सन् 1947 के विभाजन और हिन्दू-मुसलमान दंगे को लोग भूले नहीं थे कि 1984 का हिन्दू-सिख दंगा दिल्ली की छाती पर गहरा घाव दे गया। शरणार्थियों के आने के बाद दिल्ली की व्यापारिक संस्कृति में आए बदलावों के चलते परम्परागत रईसों के जीवन में बदलाव लाने की मजबूरियों की भी चर्चा की गई है।
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