इस जीवनी में परसाई के अलक्षित जीवन प्रसंगों को पढ़ना रोमांचकारी है। इसमें लक्षित परसाई से कहीं अधिक अलक्षित परसाई हैं जिन्हें जाने बिना वह चरितव्य समझ नहीं आएगा, जो परसाई के मनुष्य और लेखक को एपिकल बनाता है। जीवनी जीवन चरित है। ये गद्य और पद्य दोनों में लिखी गयी हैं। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में जीवनीपरक साहित्य का इतिहास उपलब्ध है। यूरोप में विलियम रोपर ने ब्रिटिश राजनीतिज्ञ सर थामस मूर की जीवनी 1626 में लिखकर इस विधा की शुरुआत की । भारतेन्दु, हाली, बालमुकुन्द गुप्त, शिवपूजन सहाय से लेकर अमृत राय, रामविलास शर्मा, विष्णु प्रभाकर, शरद दत्त के आगे तक जीवनीकारों की एक समृद्ध परम्परा दृश्य में है। कह सकते हैं परसाई की जीवनी को इस क्रम में शुमार किया जा सकता है। यह आज़ादी के पूर्व और बाद का सृजनात्मक इतिहास है और परसाई की भूमिका और अवदान पर यह कृति समावेशी रोशनी डालती है।
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