कबीर और रामानंद : किंवदंतियाँ\n\nकिंवदन्ती और संस्कृति के नाम पर ब्राह्मण को झूठ बोलने का अधिकार दिया जा सकता है लेकिन उसे यह अधिकार नहीं दिया जा सकता है कि दलित उसका विश्वास भी करेगा। दोनों के बीच संवाद का यही समझौता है। इस समझौते को बिगाड़ने की कोशिश में नीयत खराब है। ब्राह्मण झूठ बोलता रहे और दलित उसका अविश्वास करता रहे-यह भी दलित समस्या का एक मुकम्मिल समाधान हो सकता है।\n\n- भूमिका से
डॉ. धर्मवीर - जन्म : 9 दिसम्बर, 1950। व्यवसाय : 1980 के बैच के केरल कैडर के आई.ए.एस. अधिकारी। रचनाएँ : दूसरों की जूतियाँ (2007) तीन द्विज हिन्दू स्त्रीलिंगों का चिन्तन (2007) चमार की बेटी रूपा (2007) दलित सिविल कानून (2007) 'जूठन' का लेखक कौन है? (2006) थेरीगाथा की स्त्रियाँ और डॉ. अम्बेडकर (2005) कामसूत्र की सन्तानें (2005) प्रेमचन्द : सामन्त का मुन्शी (2005) कबीर: सूत न कपास (2003) कबीर के कुछ और आलोचक (2002) कबीर : डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रक्षिप्त चिंतन (2000) कबीर और रामानंद : किंवदंतियाँ (2000) कबीर : बाज भी, कपोत भी, पपीहा भी (2000) कबीर के आलोचक (1997) सन्त रैदास का निर्वर्ण सम्प्रदाय (पुरस्कृत) (1990) अशोक बनाम वाजपेयी : अशोक वाजपेयी (2004) डॉ. अम्बेडकर के प्रशासनिक विचार (2004) सीमन्तनी उपदेश (सम्पादित) (2004) हिन्दी की आत्मा (1989)।
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