पश्चिमी तिब्बत के नितांत एकांत में संपूर्ण उच्चता, धवलता एवं दिव्यता के साथ धरा पर अवतरित है अप्रतिम कैलास. अलौकिक ईश्वरीय सत्ता का यों मर्त्यलोक में पदार्पण चकित करता है। नेत्रों पर सहज विश्वास नहीं होता, समक्ष उपस्थत कर्णिकाकार हिमशैल स्वप्न है अथवा यथार्थ? इस पावन भूम पर दैवीय तथा प्राकृतिक शक्ति की अद्भुत-अनुपम अनुभूति हुआ करती है; कुछ तो है यहाँ। हजारों वषोर्ं से भक्त, पर्यटक एवं अनुसंधित्सु यहाँ आते रहे हैं। हिंदू, तिब्बती तथा बौद्ध के अलावा अन्यान्य कई धमर्ावलंबियों के लिए यह चुंबकीय क्षेत्र श्रद्धाजनित आकर्षण का केंद्र रहा है। हिंदुओं के लिए कैलास शिवलोक भी है और साक्षात् शिव का स्वरूप भी। कैलास की ही छत्रच्छाया में लहराती हुई पवित्र झील है मानसरोवर, जिसे ब्रह्म्ा के मानस की उत्पत्ति माना जाता है। नीरव-जनशून्य मरुभूम पर स्थत कैलास-मानसरोवर सर्वोच्च्ा तीर्थ मात्र नहीं, यहाँ सर्वत्र छिटका है परिवर्तनधमर्ा प्रकृति का अनोखा इंद्रधनुषी रंग; बेहद मोहक, अतीव सुंदर। क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर यहाँ अलग ही रूप धरते हैं। नन्हे रजकण, माणिक्य-सी झलकती जलराशि, श्वेताभ कैलास के लिए कैनवास बनता स्वच्छ-निष्कलंक चट नीला आकाश, बर्फीली हवाएँ, सूरज की सीधी पड़ती प्र र किरणें, चाँद-तारों की दूधिया छटा और बेजोड़ जलपक्षी—सबकुछ निराले, उपमाएँ यहाँ सर्वथा असमर्थ हैं। कैलास-मानसरोवर का चित्रण-वर्णन असंभव है, नेति-नेति। फिर भी, प्रस्तुत रचना में कैलास-मानसरोवर को शब्दों में सहेजने की ईमानदार कोशिश की गई है। इसमें यात्रा का आनंद है, गंतव्य का यथातथ्य विवरण है तो जानकारियों का अभूतपूर्व संकलन भी। कैलास-मानसरोवर दुर्गम स्थल है, अस्तु इस पर साहित्य का अभाव भी बना हुआ है। इसकी पूर्ति की दृष्ट से यह ग्रंथ विशेष महत्त्व र ता है। पाठक आस्तक हों अथवा नास्तक, भक्त हों अथवा जिज्ञासु पर्यटक, यह कृति उन्हें उनकी भाव-दृष्ट के अनुसार अवश्य तृप्ति प्रदान करेगी।.
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Subhadra RathoreAdd a review
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