लघुकथा संग्रह ‘कल की बात’ एक विशिष्ट विधा में है, जिसके हर अंक में ठीक पिछले दिन की घटनाओं का मनोरंजक वर्णन है। आपबीती शैली में लिखी गयी ये कहानियाँ कभी गल्प, कभी हास्य, कभी उदासी को छूती हुयी आज के दौर की साक्षी है। कहानीकार, उसके खुशमिजाज सहकर्मी, आस-पड़ोस में रहने वाले चुलबुले बच्चे, भारतीय समाज में रचे-बसे गीत और कविताएँ पारम्परिक मूल्यों के साथ विविधता में बने रहते हैं। कई बार छोटी-छोटी बातों में गहरी बात छुपी होती है, ऐसी ही है कल की बात ! इसे पढ़ कर आप भी कह उठेंगे कि यह मेरी भी कहानी है। कल की बात हमारी ही तो बात है! ‘कल की बात : षड्ज’ इस लघुकथा संकलन शृंखला की पहली, ‘कल की बात : ऋषभ’ दूसरी और ‘कल की बात : गांधार’ तीसरी कड़ी है।
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