काल से होड़ लेते कवि शमशेर और ग्रेस - \nतुलनात्मक साहित्य पर हिन्दीतर भाषी राज्यों में जमकर शोधकार्य होता है। चाहे वे दक्षिण के राज्य हों, या बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्य। लेकिन तुलनात्मक शोधकार्य प्रायः दो रचनाकारों, दो कृतियों या ऐतिहासिक समय के सन्दर्भ में ही होते देखे गये हैं। अथवा फिर समाजशास्त्रीय प्रश्नों को लेकर प्रायः तुलनात्मक शोधकार्य की ओर शोधार्थियों की प्रवृत्ति होती है। इधर माध्यमों के परिप्रेक्ष्य में भी कार्य होने लगे हैं। तुलनात्मक अध्ययन की जो अमरीकी स्कूल है जिसमें काव्यशास्त्र, सौन्दर्यशास्त्र या स्वरूप के सन्दर्भ में तुलना अपेक्षित होती है उसमें अवगाहन करने का साहस कम ही लोग करते हैं। 'काम निपटाने' के इस दौर में सूक्ष्म का अध्ययन करने की रुचि और इतनी समझ भी अब कहाँ रही है। चुनौती भरे विषयों को चुनने और सोचने के सन्दर्भ में इस अकादमिक जगत में जिन गिने-चुने विरले शूरों की गिनती की जायेगी उनमें कुंदे जी का नाम अग्रिम पंक्ति में गिना जायेगा।\nहिन्दी का पाठक वर्ग शमशेरजी से परिचित है। पर ग्रेस उनके लिए एक अजनबी-सा नाम हो सकता है; जैसे सम्भवतः शमशेर मराठी के पाठकों के लिए। ग्रेस अर्थात् माणिक सीताराम गोड़घाटे। पर साहित्य रसिकों के लिए ग्रेस। माणिक सीताराम गोड़घाटे नाम में जो एक साधारणता और सामान्यता दिखाई पड़ती है वह ग्रेस शब्द के जुड़ जाते ही नहीं रहती। मैंने पहले ग्रेस के ललित निबन्धों को पढ़ा था फिर उनकी कविताओं को। उनके ललित निबन्ध कविता की तरह ही आपके भीतर अपने सौन्दर्य के साथ लम्बे समय तक बने रहते हैं।\nशमशेरजी और ग्रेस दोनों ही सघन काव्यात्मक गद्य लिखते थे। सौन्दर्यधर्मिता दोनों की रचनात्मकता के केन्द्र में रही है। दोनों ही दुरूह माने गये हैं। हाँ ग्रेस शमशेरजी के बाद वाली पीढ़ी में आते हैं। पुरुषोत्तम जी की इस पुस्तक में इन दोनों की कविताओं में सौन्दर्य बिन्दुओं को विश्लेषित करने का स्तुत्य प्रयास किया है। —रंजना अरगड़े (पुस्तक की भूमिका से)
डॉ. पुरुषोत्तम कुंदे - जन्म: 3 नवम्बर। शिक्षा: एम.ए., बी.एड्., एम.फिल., पीएच.डी.,सेट, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, पुणे। एसोसिएट: भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास शिमला। (2015-18) प्रकाशन: साहित्य और सिनेमा, सिनेमा का सौन्दर्यशास्त्र (सम्पा.)। पत्र-पत्रिकाओं में लेखन: समकालीन भारतीय साहित्य, गगनांचल, भाषा, साहित्य सेतु, दस्तावेज़, शोध दिशा आदि। विदेश यात्राएँ: राष्ट्रीय प्राच्य भाषा सभ्यता संस्थान पेरिस, फ्रांस में अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी संगोष्ठी में शोधपत्र प्रस्तुति (2016)। लिस्बन विश्वविद्यालय लिस्बन, पोर्तुगाल में अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी संगोष्ठी में शोधपत्र प्रस्तुति (2019)। व्याख्यान: केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नयी दिल्ली भारत सरकार की ओर से प्राध्यापक व्याख्यानमाला, नवलेखक शिविर में विशेषज्ञ। राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में मार्गदर्शन। पुणे, अहमदनगर, शिमला आकाशवाणी पर प्रस्तुति।
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