कल्पतरु की उत्सवलीला : रामकृष्ण परमहंस - अनुशीलन और ललित निबन्ध के क्षेत्र में विशिष्ट अवदान के लिए प्रतिष्ठित डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र की यह कृति उनके लेखन में नया प्रस्थान है; संवेदना और शिल्प की एक नयी मुद्रा शोध लालित्य का एक अनुपम समन्वय श्री रामकृष्ण परमहंस के जीवन प्रसंग पर केन्द्रित, अब तक प्रकाशित साहित्य से सर्वथा भिन्न यह प्रस्तुति अपनी सहजता और लालित्य में विशिष्ट है। श्री रामकृष्ण नवजागरण के सांस्कृतिक नायकों के बीच अद्वितीय थे। उनके सहज आचरण और ग्राम्य बोली-बानी से जनमे प्रकाश का लोक मानस पर जितना गहरा प्रभाव पड़ा है उतना बौद्धिक संस्कृति-नायकों की पण्डिताई का नहीं। पण्डितों की शक्ति और थी, पोथी-विद्या को अपर्याप्त माननेवाले श्री रामकृष्ण की शक्ति और। एक तरफ़ तर्क और वाद था; दूसरी ओर वाद निषेध की आकर्षक साधना थी। सम्प्रदाय सहिष्णुता दैवी विभूति के रूप में श्री रामकृष्ण के व्यक्तित्व में मूर्त हुई थी, जिसे विश्व-मानव के लिए 'विधायक विकल्प' के रूप में, कृष्णबिहारी मिश्र ने ऐसी जीवन्तता के साथ रचा है कि उन्नीसवीं शती का पूरा परिदृश्य और परमहंस देव का प्रकाशपूर्ण रोचक व्यक्तित्व सजीव हो उठा है। ज्ञानपीठ आश्वस्त है, नितान्त अभिनव शिल्प में रचित यह कृति, उपभोक्ता सभ्यता के आघात से कम्पित समय में, प्रासंगिक मानी जायेगी।
डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र - जन्म: 1 जुलाई, 1936; बलिहार, बलिया (उ.प्र.)। शिक्षा: एम.ए. (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएच.डी. (कलकत्ता विश्वविद्यालय)। 1996 में बंगवासी मार्निंग कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त। देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों के सारस्वत प्रसंगों में सक्रिय भूमिका। प्रमुख कृतियाँ: 'हिन्दी पत्रकारिता : जातीय चेतना और खड़ी बोली साहित्य की निर्माण-भूमि', 'पत्रकारिता : इतिहास और प्रश्न', 'हिन्दी पत्रकारिता : जातीय अस्मिता की जागरण भूमिका', 'गणेश शंकर विद्यार्थी', 'हिन्दी पत्रकारिता : राजस्थानी आयोजन की कृती भूमिका' (पत्रकारिता); 'अराजक उल्लास', 'बेहया का जंगल', 'मकान उठ रहे हैं', 'आँगन की तलाश', 'गोरैया ससुराल गयी' (ललित निबन्ध संग्रह); 'आस्था और मूल्यों का संक्रमण', 'आलोक पंथा', 'सम्बुद्धि', 'परम्परा का पुरुषार्थ', 'माटी महिमा का सनातन राग' (विचार प्रधान निबन्ध-संग्रह); 'नेह के नाते अनेक' (संस्मरण); 'कल्पतरु की उत्सव लीला' और 'न मेधया' (परमहंस रामकृष्णदेव के लीला-प्रसंग पर केन्द्रित)। अनेक कृतियों का सम्पादन; 'भगवान बुद्ध' (यूनू की अंग्रेज़ी पुस्तक का अनुवाद)। त्रैमासिक पत्रिका 'समिधा' और मासिक 'भोजपुरी माटी' का सम्पादन। 'माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय' द्वारा डी.लिट्. की मानद उपाधि। 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' के 'साहित्य भूषण पुरस्कार', 'कल्पतरु की उत्सव लीला' हेतु वर्ष 2006 के भारतीय ज्ञानपीठ के 'मूर्तिदेवी पुरस्कार' से सम्मानित।
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