Kanvaas Par Prem

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कैनवास पर प्रेम - \nविमलेश त्रिपाठी ने कविता और कहानी के क्षेत्र में तो अपने रचनात्मक क़दम पहले से ही रख दिये थे और अन्य पुरस्कारों के साथ-साथ भारतीय ज्ञानपीठ का 'नवलेखन पुरस्कार' भी अपनी झोली में डाल लिया था। उनके कविता-संग्रह 'हम बचे रहेंगे', 'एक देश और मरे हुए लोग'; कहानी-संग्रह 'अधूरे अन्त की शुरुआत' इस बात का सुबूत है कि विमलेश में साहित्यिक परिपक्वता कूट-कूट कर भरी है।\nविमलेश एक मँजे हुए लेखक की तरह अपने समय को लिखता है। उसकी क़लम में समाज का दर्द है और वह परम्पराओं को तोड़ने का साहस भी रखता है। परम्पराओं को तोड़ने के लिए परम्पराओं का ज्ञान होना आवश्यक है। विमलेश के लेखन की यही विशेषता उसे अलग खड़ा करती है। उसके लेखन से स्पष्ट हो जाता है कि वह किसी आलोचक विशेष को प्रसन्न करने के लिए नहीं लिख रहा, बल्कि जो कुछ उसके दिल को छूता है, परेशान करता है उसी विषय पर उसकी क़लम चलती है।\nहमें कॉलेज और विश्वविद्यालय में बार-बार सिखाया गया था कि लेखक को कहानी और पाठक के बीच में स्वयं नहीं आना चाहिए... मगर परम्पराएँ तो टूटने के लिए ही बनती हैं न।\nविमलेश का 'कैनवास पर प्रेम' उपन्यास एक ऐसी कथा का वितान रचता है, जहाँ प्रेम और खो गये प्रेम के भीतर की एक विशेष मनःस्थिति निर्मित हुई है। अपने उत्कृष्ट कथा शिल्प के सहारे विमलेश ने धुन्ध में खो गये उसी प्रेम को कथा के नायक सत्यदेव की मार्फ़त रचा है। विमलेश के इस नये उपन्यास का हिन्दी जगत में खुल कर स्वागत होगा और यह हमें एक नयी दिशा में सोचने को मजबूर करेगा।-तेजेन्द्र शर्मा

विमलेश त्रिपाठी - बक्सर, बिहार के एक गाँव हरनाथपुर में जन्म (7 अप्रैल, 1979)। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही। प्रेसिडेंसी कॉलेज से स्नातकोत्तर, बीएड, कलकत्ता विश्वविद्यालय में शोधरत। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, समीक्षा, लेख आदि का प्रकाशन। सम्मान: सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से काव्य लेखन के लिए युवा शिखर सम्मान, भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार, सूत्र सम्मान, भारतीय भाषा परिषद का युवा पुरस्कार, राजीव गाँधी एक्सिलेंट अवार्ड। कृतियाँ: ‘हम बचे रहेंगे', 'एक देश और मरे हुए लोग' (कविता संग्रह), 'अधूरे अन्त की शुरुआत'(कहानी-संग्रह), 'कैनवास पर प्रेम' (उपन्यास)। 2004-5 के वागर्थ के नवलेखन अंक की कहानियाँ राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित। देश के विभिन्न शहरों में कहानी एवं कविता पाठ। कोलकाता में रहनवारी।

विमलेश त्रिपाठी

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