यह उपन्यास 1930 में लिखा गया था जब गाँधीजी का सत्याग्रह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था। प्रेमचन्द गाँधी जी से बहुत प्रभावित थे और उन्हीं की ही तरह उनकी सहानुभूति देश के करोड़ों किसानों और गरीब मज़दूरों के साथ थी जिसकी साफ झलक इस उपन्यास में मिलती है। अपने घर-परिवार से नाखुश, नौजवान अमरकान्त अपने जीवन में प्रेम और एक मकसद पाने के लिए घर से निकल जाता है और जा बसता है शूद्रों की बस्ती में। कहानी में जहाँ एक तरफ हिन्दू-मुसलमान, मालिक-मज़दूर, शिक्षित-अशिक्षित के बीच का रिश्ता दर्शाया गया है, वहीं हिंसा और अहिंसा के बीच टकराव भी स्पष्ट झलकता है। आठ दशक पहले लिखे इस उपन्यास में जिस समाज का चित्रण है वह आज के यथार्थ को भी प्रस्तुत करता है। सरल भाषा और पात्रों के सटीक चित्रण के कारण उपन्यास-सम्राट प्रेमचंद आज भी हिन्दी के सबसे अधिक लोकप्रिय लेखक हैं।
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Munshi PremchandAdd a review
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