कठगुलाब - \nक्या 'कठगुलाब' को मैंने लिखा है? या मेरे समय ने लिखा है? असंगत, विखण्डित, विश्रृंखलित, मेरे समय ने। मेरा क्या है? इतना भर कि क़रीब दस बरसों तक एक सवाल मुझे उद्विग्न किये रहा था। क्या हमारी भूमि के बंजर होने और हमारी भावभूमि के ऊसर होते चले जाने के बीच कोई गहरा, अपरिहार्य सम्बन्ध है? क्या इसीलिए हमारे यहाँ, स्त्री को धरती कहा जाता रहा है? स्त्री धरती है और भाव भी तो चारों तरफ़ व्याप रहे ऊसर से सर्वाधिक खार भी, उसी के हिस्से आयेगी या उसी की मार्फ़त आयेगी न? सबकुछ बँटा हुआ था पर सबकुछ समन्वित था। बंजर को उर्वर तक ले जाना था। समय के आह्वान पर, पाँच कथावाचक आ प्रस्तुत हुए। सब 'कठगुलाब' जीने लगे। जब मैंने उपन्यास लिखा, लगा, उसमें मैं कहीं नहीं हूँ। अब लगता है हर पात्र में मैं हूँ। होना ही था। मेरा आत्म उसमें उपस्थित न होता तो मेरे समय, समाज या संसार का आत्म कैसे हो सकता था। समय से मेरा तात्पर्य केवल वर्तमान से ही नहीं है। 'कठगुलाब' के पाँच कथावाचकों में चार स्त्रियाँ हैं, शायद इसलिए, कुछ लोग उसे स्त्री की त्रासदी की कथा मानते हैं। वे कहते हैं; मैं सुन लेती हूँ। अपने ईश्वर के साथ मिल कर हँस लेती हूँ। उपन्यास की हर स्त्री प्रवक्ता कहती है, ज़माना गुज़रा जब मैं स्त्री की तरह जी थी। अब मैं समय हूँ। वह जो ईश्वर से होड़ लेकर, अतीत को आज से और आज को अनागत से जोड़ सकता है। पूरे व्यापार पर हँसते-हँसते, पुरुष और नारी से सबकुछ छीन कर, अर्धनारीश्वर होने की असीम सम्पदा, उन्हें लौटा सकता है। अर्धनारीश्वर हुए नहीं कि सम्बन्धों की विषमता, विडम्बना पर विजय मिलनी आरम्भ हुई। आंशिक सही पर हुई विजय। पूर्ण तो कुछ नहीं होता जीवन में। पूर्ण हो जाये तो मोह कैसे शेष रहे ? मोह बिना जीवन कैसा? प्रेम हो, करुणा हो; संवेदना हो या संघर्ष; सब मोह की देन हैं। और सृजन भी। बहुत मोह चाहिए जीवन से; उससे निरन्तर छले जाने पर भी, पुनः, नूतन आविष्कार करके, उसे सर्जित करते चले जाने के लिए। — मृदुला गर्ग
मृदुला गर्ग के रचना-संसार में सभी गद्य विधाऐं सम्मिलित है। उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध, यात्रा साहित्य, स्तम्भ लेखन, व्यंग्य, संस्मरण, पत्रकारिता तथा अनुवाद। उनका कथा-साहित्य, कथ्य और शिल्प के अनूठे प्रयोग के लिए जाना जाता है। व्यक्ति व समाज के मूल द्वन्द् उसमें एकमएक हो जाते हैं और अपनी विडम्बनाओं में गहराई तक परखे जाते हैं। भाषा की लय और गत्यात्मकता उसे अत्यन्त पठनीय बनाती है। प्रकाशित साहित्य : नौ उपन्यास : उसके हिस्से की धूप (1975); वंशज (1976), चित्तकोबरा (1979); अनित्य (1980); मैं और मैं (1984); कठगुलाब (1996); मिलजुल मन (2009), वसु का कुटुम (2016); द लास्ट ईमेल (अंग्रेज़ी में 2017)। 80 कहानियाँ : 2003 तक प्रकाशित 8 कहानी संग्रहों की सम्पूर्ण कहानियाँ संगति-विसंगति नाम से 2003 में, दो खण्डों में प्रकाशित। 2022 तक की सम्पूर्ण 86 कहानियाँ प्रकाशित 2022। 2003 के बाद के उल्लेखनीय चयनित कहानी संग्रह : संकलित कहानियाँ (2012) नैशनल बुक ट्रस्ट; दस प्रतिनिधि कहानियाँ (2008) किताबघर; यादगारी कहानियाँ (2009) हिन्द पॉकेट बुक्स तथा प्रतिनिधि कहानियाँ (2013) राजकमल प्रकाशन। चार नाटक : एक और अजनबी (1978); जादू का कालीन (1993); साम दाम दण्ड भेद (बाल नाटक, 2011); कैद-दर-कैद (2013); कितनी कैदें और कठगुलाब नाटक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंग महोत्सव में मंचित। सात निबन्ध संग्रह : रंग-ढंग (1995); चुकते नहीं सवाल (1995); कुछ अटके कुछ भटके (यात्रा-वृत्तान्त, 2006), मेरे साक्षात्कार (2011); कृति और कृतिकार (संस्मरण, 2013) कृति में स्त्री पात्र (आलोचना, 2016); आमने सामने (साक्षात्कार, 2018) दो व्यंग्य संग्रह : कर लेंगे सब हज़म (2007); खेद नहीं है (2010)। अनूदित कृतियाँ इनके उपन्यास व कहानियाँ अंग्रेज़ी, जर्मन, चैक, जापानी, रूसी आदि विदेशी तथा अनेक भारतीय भाषाओं में अनूदित-प्रकाशित हैं। प्रमुख हैं : चित्तकोबरा : द ज़िफ्लेक्टे कोबरा नाम से जर्मन में (1988), चित्तकोबरा नाम से अंग्रेज़ी में (1999), कोबरा मॉएगो रज़ूमे नाम से रूसी में (2016) और कोब्रा दे ले इस्प्री नाम से फ़्रांसीसी में 2022 में प्रकाशित। कहानियाँ : डैफ़ोडिल्स ऑन फ़ायर नाम से अंग्रेज़ी में अनूदित कहानियाँ (1999), कठगुलाब : कंट्री ऑफ़ गुड्बाइज़ नाम से अंग्रेज़ी में, काली फ़ॉर विमेन द्वारा (2003); कठगुलाब शीर्षक से ही मराठी में साकेत प्रकाशन द्वारा (2007) और मलयाळम में ज्ञानेश्वरी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित (2009); वुडरोज़ नाम से जापानी में गेन्डाएकिकाकुशित्सु पब्लिशर्स, तोक्यो द्वारा प्रकाशित (2012); अनित्य : अनित्य हाफ़वे टु नोवेधर नाम से अंग्रेज़ी में ऑक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित (2010); और अनित्य नाम से मराठी में मनोविकास प्रकाशन द्वारा प्रकाशित (2012)। मैं और मैं उपन्यास मी अणि मी नाम से मराठी में और मूँ ओ मूँ नाम से ओड़िया में प्रकाशित (2020)। मिलजुल मन उपन्यास बंगला, तेलुगु, तमिल, पंजाबी, उर्दू, राजस्थानी में अनूदित। वसु का कुटुम मलयाळम में दिल्ली की लड़की नाम से अनूदित (2022), ज्ञानेश्वरी प्रकाशन। विशिष्ट पुरस्कार सम्मान : हैलमनहैमट ग्रांट, ह्यूमन राइट्स वॉच, न्यू यॉर्क 2001, कठगुलाब उपन्यास को व्यास सम्मान 2004, मिलजुल मन को साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2013, राम मनोहर लोहिया सम्मान, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2015। अन्य पुरस्कार : साहित्यकार सम्मान, हिन्दी अकादेमी दिल्ली 1988, साहित्य भूषण, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2002, महाराज वीरसिंह पुरस्कार, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, उपन्यास उसके हिस्से की धूप 1975, सेठ गोविन्द दास पुरस्कार, जादू का कालीन नाटक को 1993। अन्य उपलब्धियाँ : मृदुला गर्ग युगोस्लाविया, जर्मनी, इटली, डेनमार्क, जापान, अमरीका, चीन व रूस आदि देशों के सांस्कृतिक संस्थानों व विश्वविद्यालयों द्वारा आमन्त्रित हुई हैं। उन्होंने वहाँ अपना रचना पाठ किया है व समकालीन साहित्यिक मुद्दों पर व्याख्यान दिये हैं। ये व्याख्यान तथा अंग्रेज़ी में लिखे अन्य चिन्तनपरक लेख देशी-विदेशी पत्रिकाओं व संचयनों में संकलित हैं। सम्पर्क सूत्र : ई-421 (भूतल), जी.के. (ग्रेटर कैलाश), भाग-2, नयी दिल्ली-110048 -लेखिका का फ़ोटो 'द हिन्दू', 1982 से साभार।
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