Kaun Jata Hai Wahan

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कौन जाता है वहाँ - असंगघोष हिन्दी दलित काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी कविता दलित आन्दोलन की सभी प्रवृत्तियों को अपनाते हुए उसमें सार्थक योगदान देने का प्रयास करती है। दूसरे शब्दों में, जहाँ वह दलित विचारधारा से शक्ति अर्जित करती है, वहीं आज़ादी, सामाजिक न्याय और समानता के लिए बेचैन स्वर से ओत-प्रोत होकर उसे मज़बूती देती है। यह कार्य वह बिना लागलपेट के करती है यानी प्रत्यक्ष जीवन का सीधा चित्रण करती है। कोई लक्षणा-व्यंजना नहीं - बिल्कुल अभिधात्मक और सच्ची भाषा की कविता। यही उसकी कला है, और दृष्टि भी उसमें तेज़ आक्रोश और विद्रोह है, लेकिन जोश-जोश में वह यथार्थ से विचलित नहीं होती। आक्रोश और विद्रोह असंगघोष की कविता का वह 'आधार' है जिसके ऊपर 'यथार्थ' खड़ा होता है, लगभग दस्तावेज़ बनकर दूसरे शब्दों में कविता कई क्रिया-प्रतिक्रिया के बीच इन्सानियत के प्रश्न को सामने रखती है। असंगघोष की कविता, दलित आन्दोलन के केन्द्रीय चिन्तन के अनुरूप, जातिवादी सोच पर प्रहार की कविता है। इसमें 'स्वयं' अर्थात् अपनी जाति (दलित) के प्रति स्वाभाविक जागरूकता है। 'स्वाभाविक' इसलिए कि यह 'वर्ग' की अवधारणा में आवश्यक संशोधन के साथ अपना विकास करती है। वर्ग की अवधारणा जहाँ आर्थिक निर्धारणवाद का शिकार है वहीं 'जाति' की स्थिति सामाजिक व्यवस्था के अधीन है। इसलिए इस मोर्चे पर लड़ाई ज़्यादा जटिल है। इसमें कई स्तरों पर संघर्ष की माँग होती है। इस दृष्टि से असंगघोष पर्याप्त रूप से कामयाब हैं। यह कौन जाता है वहाँ असंगघोष का दसवाँ संग्रह है। सामान्यतः उम्र के साथ कवि थोड़ा रुक जाता है। लेकिन हमारा यह कवि इस बात का अपवाद है। वही राजनीतिक-सामाजिक चेतना। यही नहीं, विषय का यत्किंचित विस्तार भी हुआ है। 'सपने और मेरा सामान' जैसी कविता को देखें तो कवि उस दिशा में जाता दिखाई पड़ता है जिसे फैंटेसी की दुनिया कहते हैं। यह नयी ऊर्जा का संकेत है। कौन जाता है वहाँ नाम से स्पष्ट है कि कवि प्रभु वर्ग को चुनौती दे रहा है-उसकी सोच और विश्वासों को। ‘कविता का शीर्षक' कविता के सहारे कहें तो यह 'वर्ग' अपनी बूढ़ी दशा को प्राप्त कर 'अन्तिम यात्रा' पर है। संग्रह का सारतत्व है प्रभु वर्ग की संस्कृति पर चोट और प्रतिरोध की संस्कृति का विकास। इस दृष्टि से असंगघोष वंचित वर्ग के सच्चे प्रवक्ता के रूप में उपस्थित होते हैं। कवि आख़िर 'सचाई' का प्रवक्ता ही तो होता है। - सुधीर रंजन सिंह

असंगघोष का जन्म 29 अक्टूबर 1962 को मध्य प्रदेश के जावद क़स्बे में हुआ। अपने क़स्बे में ही स्थित मान्यता प्राप्त महाविद्यालय से बी. कॉम. किया तदुपरान्त रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से एम.ए. (इतिहास) की पढ़ाई कर प्राविण्य सूची में प्रथम स्थान एवं स्वर्ण पदक प्राप्त किया तथा यहीं से पीएच. डी. की, इग्नू से एम.ए. (ग्रामीण विकास) तथा एम. बी. ए. (मानव संसाधन) किया। बैंक की नौकरी और उसके पश्चात शासकीय सेवा करते हुए सेवानिवृत्त । हिन्दी साहित्य की दलित धारा में सतत लेखन कार्य, अब तक हत्यारे फिर आयेंगे सहित दस कविता संग्रह प्रकाशित। आपकी कविताएँ एवं कहानियाँ महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं तथा अंग्रेजी, नेपाली, असमी, उड़िया, मलयालम, गुजराती, मराठी, पंजाबी आदि भाषाओं में कविताओं का अनुवाद प्रकाशित। त्रैमासिक 'तीसरा पक्ष' का सम्पादन किया और मलय रचनावली के तीन सम्पादकों में से एक सम्पादक । सम्मान : म.प्र. दलित साहित्य अकादमी, उज्जैन द्वारा पुरस्कृत - 2002, सृजनगाथा सम्मान-2013, गुरु घासीदास सम्मान-2016, भगवानदास हिन्दी साहित्य पुरस्कार-2017, केशव पाण्डे कृति कविता सम्मान-2019, मन्तव्य सम्मान-2019। 'सम्पर्क : 'राजगृह', डी-1, लक्ष्मी परिसर, आलोक टॉवर के पास, हवा बाग कॉलेज के पीछे, कटंगा-गोरखपुर, जबलपुर -482001 (म.प्र.) मो. : 08224082240 ई-मेल : asangghosh@gmail.com

असंगघोष

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