कवि परम्परा की पड़ताल - \nयह किताब उत्तरछायावादी दौर के बाद उभरनेवाले कवियों से लेकर बीसवीं सदी के सातवें दशक तक स्थापित हो चुके कवियों की कविता को देखने का विशुद्ध पाठकीय उपक्रम है। इन कवियों ने आज की हिन्दी कविता के लिए पुख़्ता आधार बनाने का काम किया है। इस काम के सिलसिले में यह विचार और भी मज़बूत हुआ है कि हिन्दी कविता अपने स्वभाव में सर्वसमावेशी और बहुलतावादी है। अनेक विचार और उन्हें कहने की कई पद्धतियाँ हिन्दी कविता में आद्यन्त विद्यमान रही हैं। विशेष तथ्य यह है कि मनुष्य और उसका जीवन-जगत इस कविता का केन्द्रीय विचार रहा है। मनुष्य जीवन के सरोकारों को रचनात्मक विवेक बनाना यानी काव्य विषय के रूप में प्रस्तावित करना इसकी ख़ासियत है। बुनियादी तौर पर यह कविता जनोन्मुख रही है। मनुष्य के जटिल जीवन को सरल लोकधर्मी शैली में सहज सम्प्रेषित करनेवाली कविता ही बड़ी कविता के रूप में सामने आयी है। ऐतिहासिक नज़रिये से देखें तो इस किताब में जिन कवियों पर बात की गयी है वे प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता, साठोत्तर कविता और बीसवीं सदी के सातवें दशक के स्थापित कवि हैं। यह कहने में कोई हिचक नहीं कि यह वर्गीकरण कतई अकादमिक है लेकिन कोई और विकल्प ग़ैर-अकादमिक ऋषि-मुनियों ने अब तक सुझाया नहीं है, इसलिए फ़िलहाल इससे ही काम चलाना होगा।\nइस किताब में कवियों पर की गयी टिप्पणियाँ पेशेवर आलोचक या आत्मश्लाघाग्रस्त रचनाकार की न होकर एक सहृदय पाठक की हैं। कविता का आस्वाद लेते हुए आलोचकीय निष्कर्ष अनायास व्यक्त हुए हैं।
हेमन्त कुकरेती - जन्म 13 मार्च, 1965 मूल रूप से ग्राम जसपुर (पौड़ी गढ़वाल) से सम्बद्ध। शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से यू.जी.सी. फ़ेलोशिप योजना के तहत भारतेन्दु और शंकर शेष के नाटकों पर एम.फिल. और पीएच.डी. की उपाधि। पत्र-पत्रिकाओं में कविता के अलावा समीक्षात्मक टिप्पणियाँ तथा कला संस्कृति, फ़िल्म और रंगमंच पर नियमित लेखन। आकाशवाणी-दूरदर्शन के लिए रचनात्मक कार्य। महत्त्वपूर्ण साहित्यिक आयोजनों में आलेख एवं काव्य-पाठ। समकालीन कविता के प्रतिनिधि काव्य संकलनों के सहयोगी कवि। प्रकाशन : 'चलने से पहले नया वस्ता', 'चाँद पर नाव', 'कभी जल कभी जाल' (कविता संग्रह); 'भारतेन्दु और उनकी अन्धेर नगरी' (आलोचना)। रूसी, पंजाबी, मराठी, कन्नड़, उर्दू, उड़िया, असमी व जर्मनी में कविताएँ अनूदित। सम्मान: 'भारतभूषण अग्रवाल सम्मान' (2001), 'कृति सम्मान' (2002), हिन्दी अकादमी दिल्ली का 'केदार सम्मान' (2003)।
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