कवि परम्परा तुलसी से त्रिलोचन - \nप्रख्यात समालोचक प्रभाकर श्रोत्रिय की 'कवि-परम्परा' विभिन्न युगों की कविता को ताज़गी और मार्मिकता से आधुनिक पटल पर रखती है। इस पुस्तक में शामिल 21 कवि भक्ति-युग से नयी कविता युग तक का लम्बा काल-विस्तार समेटे हैं। जहाँ एक ओर भक्तिकाल के तुलसी, कबीर, सूर, मीरा हैं, वहीं मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे राष्ट्रीय धारा के कवि और प्रसाद, निराला, पन्त, महादेवी सरीखे छायावादी कवि हैं। इधर प्रगतिवादी धारा के नागार्जुन, त्रिलोचन हैं तो उधर हैं नयी कविता के अज्ञेय, मुक्तिबोध, शमशेर, नरेश, भारती, वीरेन्द्रकुमार जैन, राम विलास शर्मा जैसे दिग्गज कवि।\nअलग-अलग युग के अलग-अलग धारा के, व्यक्तित्ववान कवियों के 'शब्दार्थ' की पहचान करते हुए आलोचक ने एक ऐसा जीवन्त, रंगारंग संसार रचा है, जिससे न तो पुराना कवि 'कल' का लगता है, न आज का कवि अगले और पिछले 'कल' से कटा हुआ, अकेला। मानो कविता अविरल जीवन-धारा है। इस पुस्तक में न कहीं अकादमिक जड़ पाण्डित्य है, न संवेदनहीन निष्प्राण बर्ताव। भाषा-शैली के टटकेपन से हर रचनाकार पुष्प की तरह खिल उठा है; गोया नये पाठक को जिज्ञासा और रुचि का वैविध्यपूर्ण संसार मिल गया हो; एक सलाहकार दोस्त जो उसकी संवेदना, चेतना और विवेक पर चढ़े मुलम्मे आहिस्ता-आहिस्ता उतारता है। भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है कि ऐसी आलोचना कृति वह पाठक को सौंप रहा है।
प्रभाकर श्रोत्रिय - जन्म: जावरा (म.प्र.)। शिक्षा: एम.ए., पीएच.डी., डी.लिट्.। आलोचना, निबन्ध, नाटक विचार की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रमुख कृतियाँ: कविता की तीसरी आँख, कालयात्री है कविता, रचना एक यातना है, अतीत के हंस : मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता, मेघदूत : एक अन्तर्यात्रा, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, कवि परम्परा : तुलसी से त्रिलोचन (आलोचना); सौन्दर्य का तात्पर्य, समय का विवेक, समय समाज साहित्य, सर्जना का अग्निपथ, प्रजा का अमूर्तन, हिन्दी कल आज और कल (निबन्ध); समय में विचार (आलेख) ; इला, साँच कहूँ तो, फिर से जहाँपनाह (नाटक); अनुष्टुप, हिन्दी कविता की प्रगतिशील भूमिका, प्रेमचन्द : आज (सम्पादित)। मूल्यांकन-पुस्तकें: प्रभाकर श्रोत्रिय: आलोचना की तीसरी परम्परा—सम्पादक : डॉ. उर्मिला शिरीष, इला और प्रभाकर श्रोत्रिय के नाटक—सम्पादक : विभु कुमार, रूपाली चौधरी। कृतियों के भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में अनुवाद। मुख्य पुरस्कार: आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी पुरस्कार, रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार, श्री शारदा सम्मान, साहित्य भूषण, दीनदयाल उपाध्याय सम्मान (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान), शताब्दी सम्मान (भ. भा. हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर) आदि। के. के. बिरला फ़ाउंडेशन की फ़ेलोशिप विदेश यात्राएँ। पूर्व में: निदेशक, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली; निदेशक, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, हिन्दी प्राध्यापक। सम्पादक: साक्षात्कार, अक्षरा, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, पूर्वग्रह, समकालीन भारतीय साहित्य।
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