‘कविता के आँगन में’ एक सजग बौद्धिक और संवेदनशील सामाजिक का संवाद है। अशोक वाजपेयी की आलोचना की यह आठवीं पुस्तक है और इस अर्थ में विशिष्ट हो सकती है कि वह ‘इस समय और समाज में कविता की जगह खोजने-बनाने, उसे भरसक बढ़ाने की’ कोशिश का परिणाम है।
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