कविवर बच्चन के साथ - हिन्दी के उस लगभग अविश्वसनीय दौर में बच्चन जी सहित ऐसे कितने ही व्यक्तित्व थे, जिनकी याद से मन में ये पंक्तियाँ उमड़ने-घुमड़ने लगती हैं "वो सूरतें इलाही किस देस बसतियाँ हैं। अब जिनको देखने को आँखयाँ तरसतियाँ हैं॥" धीरज सिर्फ़ इस तरह मिल सकता है कि जो गुज़र गये, वे कभी-न-कभी यादों में लौटेंगे और इस तरह दोबारा हमारे इर्द-गिर्द होंगे दुर्भाग्यवश हमारी भाषा में ऐसा पर्याप्त लेखन मौजूद नहीं, और जो है भी, वह अधिकतर उखाड़-पछाड़ की मानसिकता से रचा गया। सौभाग्यवश, अजितकुमार उन कुछ बचे-खुचे वरिष्ठ लेखकों में हैं, जिन्हें पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा-दीक्षा आदि के नाते पिछली पीढ़ी के अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों के निकट सम्पर्क में रहने का सुअवसर मिल सका। उन्होंने 'दूर वन में' तथा 'निकट मन में' के अपने संस्मरणों में ऐसे कुछ लोगों का सहानुभूतिपूर्ण चित्रण किया भी है। प्रस्तुत कृति में कविवर बच्चन के साथ उनका वह निजी, अन्तरंग वार्तालाप संकलित है, जिससे छायावादोत्तर काल के एक बड़े कवि के लेखन और जीवन पर काफ़ी रोशनी पड़ सकती है। इन अंकनों का अतिरिक्त महत्त्व है इनकी प्रामाणिकता। एक विशेष अर्थ में ये अंकन बच्चनजी कृत आधुनिक क्लासिक उनकी आत्मकथा-श्रृंखला 'क्या भूलूँ, क्या याद करूँ' की नींव में मौजूद पत्थरों जैसे जान पड़ेंगे। कवि के अध्ययन में इन अंकनों के नाते पाठकों की रुचि बढ़ेगी या अन्यथा इनकी कोई उपयोगिता सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि समर्पित और आडम्बरहीन लेखन से समृद्ध यह पुस्तक पाठकों के मन को खूब छुएगी।
अजितकुमार - (पूरा नाम - अजितकुमार शंकर चौधरी) 9 जून, 1933 को लखनऊ के एक प्रतिष्ठित साहित्यिक परिवार में जन्म। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षा पहले डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर (1953-56), फिर किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय (1953-98) में अध्यापन। इसी बीच (1956-62 में) विदेश मन्त्रालय, नयी दिल्ली के हिन्दी विभाग में सेवाकार्य अब सेवानिवृत्त। प्रकाशन: सात कविता संग्रहों के अलावा कहानी, उपन्यास, यात्रा संस्मरण, आलोचना आदि की लगभग दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित प्रमुख हैं। अकेले कंठ की पुकार (1958), ये फूल नहीं (1970), घरौंदा (1987), हिरनी के लिए (1993), घोंघे (1996), ऊसर (2001) ।कविता-संग्रह; अंकित होने दो (1962), विविध; छाता और चारपाई (1986)। कहानी-संग्र; छुट्टियाँ (1994)। उपन्यास; दूर वन में (1984), निकट मन में (1994) संस्मरण; सफ़री झोले में (1986), यहाँ से कहीं भी (1997) यात्रा-वृत्त; इधर की हिन्दी कविता (1959), कविता का जीवित संसार (1972)। आलोचना; कविवर बच्चन के साथ (2008) अंकन। सम्पादन: बच्चन निकट से (संस्मरण, 1968), कविताएँ- 1954, 1963, 1964, 1965, हिन्दी की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कविताएँ 1, 2, 3 (1952-1980), आठवें दशक की श्रेष्ठ प्रतिनिधि कविताएँ (1955 (1982), बच्चन रचनावली (1983), सुमित्रा कुमारी सिन्हा रचनावली (1990) और बच्चन के चुने हुए पत्र (2001)I
अजीत कुमारAdd a review
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