केदारनाथ सिंह संचयन - \nकेदारनाथ सिंह अपनी भोजपुरी भाषा की अनुगूँजों से सम्पृक्त हिन्दी के अप्रतिम आधुनिक कवि हैं। प्रगतिशील लेखक आन्दोलन के अग्रणी कवि के रूप में आपने वंचित समाज को विशिष्ट पहचान और गरिमा दी। यथार्थ और फ़न्तासी, छन्द और छन्देतर की एक सूक्ष्म बनावट आपके काव्यशिल्प को एक विरल चमक और रंग देती है। काल और स्थानबोध की दुर्लभ छवियों में रचा-बसा कवि का लेखन बहुध्वन्यात्मक, बहुरंगी और बहुआयामी है। बिम्ब सृजन में अपनी अद्वितीय अभिव्यक्ति के लिए चर्चित डॉ. सिंह का अन्तर्जगत जातीय स्मृतियों से बनकर आधुनिक हुआ है। केदारनाथ सिंह की कविता अपनी विलक्षणता में दृश्यात्मक, लोकगल्प के आस्वाद में पगी, भौतिक-अभौतिक जगत की खोज-ख़बर लेती, नाट्यतत्त्वों से युक्त, सजल भाषा में दीप्त है। डॉ. सिंह आधुनिक सृजनशीलता और ग्रामीण जातीय चेतना की अनुभव सन्धि से कविता का नया सौन्दर्यशास्त्र रचते ऐसे कवि हैं, जिनके लिखने में बोलने की आवाज़ केन्द्रीय है। जीवन की नैसर्गिक गरिमा के पक्षधर कवि डॉ. केदारनाथ सिंह की कविता हमारे समय की सर्वाधिक विश्वसनीय पुकार है।\nपाठकों को यह चयन सिर्फ़ किताब नहीं अपितु आत्मीय सहचर की अनुभूति देगा।
लीलाधर मंडलोई - जन्म: जन्माष्टमी। सही तिथि व साल अज्ञात। शिक्षा: बी.ए., बी.एड. (अंग्रेज़ी) पत्रकारिता में स्नातक। एम.ए. (हिन्दी)। प्रसारण में उच्च शिक्षा—सी.आर.टी. लन्दन से। पदभार: दूरदर्शन, आकाशवाणी के महानिदेशक सहित कई राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय समितियों के साथ ही प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य। कृतियाँ: घर-घर घूमा, रात बिरात, मगर एक आवाज़, काल बाँका तिरछा, क्षमायाचना, लिखे में दुक्ख, एक बहुत कोमल तान, महज शरीर नहीं पहन रखा था उसने, उपस्थित है समुद्र (हिन्दी व रूसी में) (कविता संग्रह)। देखा-अदेखा, कवि ने कहा, हत्यारे उतर चुके हैं क्षीर सागर में, प्रतिनिधि कविताएँ 21वीं सदी के लिए पचास कविताएँ (कविता चयन)। कविता का तिर्यक (आलोचना)। अर्थजल, दिल का क़िस्सा (निबन्ध)। दाना-पानी (डायरी)। काला पानी (यात्रा वृत्तान्त)। बुन्देली लोकगीतों की किताब, अंदमान निकोबार की लोककथाओं की दो किताबें— पेड़ भी चलते हैं, चाँद का धब्बा (बाल साहित्य)। सम्पादन: केदारनाथ सिंह संचयन, कविता के सौ बरस, स्त्रीमुक्ति का स्वप्न, कवि एकादश, रचना समय, समय की कविता आदि। अनुवाद: पानियों पे नाम (शकेब ज़लाली की ग़ज़लों का लिप्यंतरण मंजूर एहतेशाम के साथ)। माँ की मीठी आवाज़ (अनातोली परम्परा की रूसी कविताएँ, अनिल जनविजय के साथ)। फ़िल्म: कई रचनाकारों पर डाक्यूमेंट्री निर्माण, निर्देशन तथा पटकथा लेखन। कुछ धारावाहिकों में कार्यकारी निर्माता तथा संगीत व साहित्य के ऑडियो-वीडियो सीडी, वीसीडी के निर्माण में सक्रिय भूमिका।
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