खंडित संवाद - \nसे.रा. यात्री की ये कहानियाँ गहरी अनुभूति और सहज अभिव्यक्ति का आकलन हैं। खंडित संवाद साधारण मनुष्य के उस संघर्ष और त्रास का दस्तावेज़ है जिसे वह कोई भी दावा किये बग़ैर अनवरत झेलता चला जाता है।\nसे.रा. यात्री की कहानियों से पाठक सुपरिचित हैं। वह उन्हें अपने दायरे में हर प्रकार की चुनौतियाँ झेलते हुए देखता है। कहानियों के पात्र उसे अपने ही प्रतिरूप लगते हैं।\nये कहानियाँ वादों के विवादों से परे हैं और पाठक को उन सच्चाइयों से परिचित कराती हैं वह जिन्हें समझता तो है, पर उनके मर्म से हमेशा स्वयं साक्षात्कार नहीं कर पाता।\nसे.रा. यात्री की कहानियों को पढ़ना अपने आप और अपने आस-पड़ोस से मिलने जैसा है। दुनिया बदली, परम्पराएँ बदलीं, जीने का तौर तरीक़ा बदल गया लेकिन कहीं कुछ है हमारे भीतर, जो अब भी शाश्वत है। बिखराव रोकने को मुँडेर बनाये हुए मूल्य हैं, जो हर पल चेताते हैं और चकाचौंध से बचाकर हमें अपनी ज़मीन से जोड़े रखते हैं। यात्री जी की कहानियाँ इसी ज़मीन की कहानियाँ हैं।\nयात्री हमें याद दिलाते हैं कि जीने का संघर्ष बीते युग की कहानी नहीं है। एक छोटे से वर्ग ने आसमानी रंगीनियों को हवा में उछालकर संघर्ष समाप्ति की घोषणा भले ही कर दी हो, पर राख के नीचे अभी चिनगारियाँ हैं। पिसते आमजन की ज़ुबान अभी चाहे कुछ न कह पा रही हो लेकिन चुप हो जाने का अर्थ हार जाना नहीं है।
से.रा. यात्री - जन्म: 10 जुलाई, 1932, मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश) मुख्य कृतियाँ: दराजों में बन्द दस्तावेज़, लौटते हुए कई अँधेरों के पार, अपरिचित शेष, चाँदनी के आरपार, बीच की दरार, टूटते दायरे, चादर के बाहर, प्यासी नदी, भटका मेघ, आकाशचारी, आत्मदाह, बावजूद, अन्तहीन, प्रथम परिचय, जली रस्सी, युद्ध अविराम, दिशाहारा, बेदख़ल अतीत, सुबह की तलाश, घर न घाट, आख़िरी पड़ाव, एक ज़िन्दगी और, अनदेखे पुल, सुरंग के बाहर (उपन्यास); केवल पिता, धरातल, अकर्मक क्रिया, टापू पर अकेले, दूसरे चेहरे, अलग-अलग अस्वीकार, काल विदूषक, सिलसिला, अकर्मक क्रिया, खण्डित संवाद, नया सम्बन्ध, भूख तथा अन्य कहानियाँ, अभयदान, पुल टूटते हुए, विरोधी स्वर, ख़ारिज और बेदख़ल (कहानी संग्रह); क़िस्सा एक खरगोश का, दुनिया मेरे आगे (व्यंग्य संग्रह); लौटना एक वाक़िफ़ उम्र का (संस्मरण)। वर्तमान साहित्य, विस्थापित (कथा संग्रह) का सम्पादन। सम्मान: साहित्य श्री, साहित्य भूषण, महात्मा गाँधी साहित्य सम्मान। सह सम्पादक - श्रीरमण मिश्र - जन्मतिथि: 24 अगस्त, 1965। संस्कृत में पीएच.डी. (संस्कृत)। सम्पादित पुस्तकें– 'उपनिषच्चयनम्' व 'पालिसंगहो'। 'हिन्दी व्याकरण एक शैक्षिक प्रयोग'।
एस.आर. यात्रीAdd a review
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