के. सच्चिदानन्दन अपनी कविताओं में शब्द संकेतों द्वारा विराट को रचने वाले कवि हैं। वे जीवन, स्वप्न और कल्पनाओं के कणों को एकत्र करते हैं और उन्हें क़लमबद्ध करते हुए इनके अर्थों को रचते हैं। वे अपनी कविताओं के विशाल फलक द्वारा यह भी सिद्ध करते हैं कि दरअसल अर्थ में किसी कविता की जागृति बार-बार होती है। खोयी हुई चीजें कविता संग्रह में मानव हृदय की असीम संवेदनाएँ हैं जिनमें प्रेम का आख्यान, चेतना की उपस्थिति और आशाओं के प्रति निष्ठा का उच्च भाव है। इन भावों में एक तरह की मुग्धता का रहस्य भी है। यह रहस्य कपास के एक नन्हे फूल समान भारहीन है जो कवि के हृदय से यात्रा करता हुआ देशकाल की सीमाओं को पार कर जाता है। यह रहस्य समय की सबसे सूक्ष्म इकाई में चैतन्य की रचना करता है। प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ मूलतः मलयालम भाषा में लिखी गयी हैं जिनका हिन्दी अनुवाद अपनी भाषा की समर्थ कवि और लेखक अनामिका ने सहृदयता, कोमलता और इन कविताओं की करुणा को जस का तस रखकर किया है। अनुवाद कार्य एक यज्ञ समान होता है और अनामिका ने इस यज्ञ में अपने समय, मन, भाषा-ज्ञान, हार्दिकता और तकनीकी श्रम की आहुति द्वारा इसे सफल बनाया है। वाणी प्रकाशन ग्रुप यह संग्रह 'वाणी भारतीय कविता अनुवाद श्रृंखला' के अन्तर्गत प्रकाशित कर भारतीय भाषाओं में एक सेतु का निर्माण करते हुए प्रसन्न व गौरवान्वित है।समकालीन भारतीय कविता-परिदृश्य से ये जो विशिष्ट कवि मैंने आनुवादिक गपशप के लिए चुने हैं हिन्दी के लिए उनके मन में गहरा अनुराग रहा है, खासकर हिन्दी कविता के लिए! खड़ी बोली हिन्दी भारतीय भाषाओं के संयुक्त परिवार की सबसे छोटी 'कन्या' भाषा है और किसी भी परिवार की सबसे छोटी कन्या की तरह सबकी मुँहलगी और चहेती भी । आधुनिकता के गर्भ से जनमने के कारण यह गहरे अर्थों में जनतान्त्रिक भी रही है : संवाद-अनुवाद- वाद-विवाद की केन्द्रस्थ भाषा, स्वाधीनता आन्दोलन की भाषा - विभिन्न भाषिक संस्कृतियों के बीच पुल बनाने का संस्कार यह घुट्टी में पीकर आयी है । प्यार करना इसको आता है-अहेतुक क़िस्म का प्यार जो देने में ही सुख पाता है, वापस क्या मिला, इस पर कभी ध्यान नहीं देता। जो कवि अपनी भाषा की आन्तरिक संरचना बदलने वाली बंकिमता घटित करता है, हिन्दी उसकी ओर दोनों हाथ बढ़ाकर खड़ी होती है; और बाबा तुलसी ने अतिथि सत्कार का जो व्यंजक चित्र खड़ा किया है, कवि शायद उसी से प्रभावित होकर दूसरी समृद्ध भाषाओं की ओर न जाकर अपनी हिन्दी के पास ही आते हैं- आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह, तुलसी वहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह । - अनामिका
के. सच्चिदानन्दन द्विभाषी कवि, आलोचक, नाटककार, सम्पादक, कथाकार और यात्रा वृत्तान्त लेखक हैं। मलयालम, अंग्रेज़ी, हिन्दी, अविक, आइरिश, फ्रेंच, जर्मन, इटेलियन, स्पेनिश, चीनी और जापानी भाषा सहित अनेक प्रमुख भाषाओं में कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हें अब तक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर के 52 साहित्यिक पुरस्कार मिल चुके हैं। केरल में इन्हें कविता और सम्पूर्ण साहित्य अवदान के लिए केरल के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया है। अपने साहित्यिक अवदान के लिए उन्हें कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा और महाराष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान भी मिल चुके हैं। श्री सच्चिदानन्दन ने लगभग 2000 पृष्ठों का काव्यानुवाद का विपुल कार्य भी किया है और यह अनुवाद विश्व की लगभग सभी भाषाओं से किया गया है। इन अनुवादों को 6 खण्डों में संकलित किया गया है। शेक्सपियर के सभी सीनेट्स का इनके द्वारा मलयाली भाषा में अनुवाद किया गया है। साथ ही हिन्दी भक्ति काव्य का 5 खण्डों में अनुवाद प्रकाशित हुआ है जिनमें कबीर, सूरदास, बुल्लेशाह, तुकाराम, वासव, अक्कमहादेवी, नामदेव, ज्ञानदेव, चोखा मेला आदि सन्त कवि शामिल हैं। उन्होंने अपनी कविताओं और वक्तव्यों का पाठ दुनिया के 30 देशों में और छह महाद्वीपों में किया है। उन्होंने केदारनाथ सिंह सहित कई भारतीय और एशियाई कविताओं के कई संकलनों का अंग्रेजी में सम्पादन भी किया है। साहित्यिक सिद्धान्त, आलोचना, निबन्ध, शिक्षा शास्त्रीय निबन्ध, संस्कृति, दर्शनशास्त्र, पर्यावरण, राजनीति आदि पर उनकी 20 पुस्तकें मलयालम में प्रकाशित हैं। साथ ही भारतीय साहित्य पर अंग्रेज़ी में उनकी पाँच किताबें प्रकाशित हैं। के. सच्चिदानन्दन केरल में अंग्रेज़ी भाषा के प्रोफ़ेसर और साहित्य अकादेमी की पत्रिका 'इंडियन लिटरेचर' के सम्पादक रहे हैं। साहित्य अकादेमी के सचिव, इग्नू मं अनुवाद सम्बन्धी अध्ययनों के प्रोफ़ेसर रहे हैं। उन्होंने चार पत्रिकाओं का मलयालम में और दो पत्रिकाओं का अंग्रेज़ी में सम्पादन किया है।
के. सच्चिदानंदन और अनामिका द्वारा अनुवादितAdd a review
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