खुदीराम बोस -\nदेश की आज़ादी में अपने प्राणों की आहुति देने वाले खुदीराम बोस सबसे कम उम्र के क्रान्तिकारी थे। उन्होंने अपने छोटे से जीवन काल में वह कर दिखाया, जो सामान्य युवक के लिए कभी सम्भव नहीं होता। खुदीराम बोस अदम्य साहसी और अपार दृढ़ इच्छा शक्ति वाले युवक थे। उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ होने वाले आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और क्रान्तिकारी कार्यों में लिप्त रहे। उन्होंने बम बनाना और अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखा फिर क्रान्तिकारी गतिविधियों में जंगल-जंगल भटकते रहे। लेखक ने इन सभी घटनाओं का सुरुचिपूर्ण ढंग से वर्णन किया है।\nखुदीराम बोस के बारे में लिखते हुए लेखक ने इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि भाषा बोधगम्य हो और उन सभी घटनाओं को स्थान मिले, जिनके कारण वे छोटी-सी उम्र में क्रान्तिकारी बने और जब वक़्त आया तो देश की ख़ातिर हँसते-हँसते फाँसी का फन्दा भी चूम लिया।\nखुदीराम बोस युवा पीढ़ी के लिए एक प्रकाश-पुंज हैं, जो उनके जीवन लक्ष्य को आलोकित करता रहेगा।
लक्ष्मेद्र चोपड़ा - जन्म : 18 जून, 1952 । शिक्षा: समाजशास्त्र में एम.ए.। पत्रकारिता-जनसंचार माध्यम और अंग्रेज़ी में डिप्लोमा। पत्रकारिता, आकाशवाणी तथा टेलीविज़न मीडिया में 44 साल का अनुभव। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सभी विधाओं की रचनाओं का प्रकाशन। 2 कहानी संग्रह, मीडिया पर 3 किताबें और कुछ नाटक प्रकाशित। नाटकों का मंच पर प्रदर्शन। विदेश की लम्बी यात्राओं के ज़रिये सामाजिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक पक्षों पर शोध तथा फुटकर लेखन।
लक्ष्मेंद्र चोपड़ाAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers