Kisan Aatmhatya Yatharth Aur Vikalp

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कहना न होगा कि स्वाधीनता के बाद ग्राम-केन्द्रित और नगर-केन्द्रित लेखन की जो बहस चली थी, उसके मूल में भी नगरों की श्रेष्ठता और सुविधासम्पन्न जीवन ही था। इसलिए गाँव पर लिखना धीरे-धीरे कम होता गया। गाँवों पर कहानियाँ या उपन्यास बहुत कम हैं। यही कारण है कि किसान आत्महत्याओं पर हिन्दी में बहुत कम लिखा गया है। जिस महाराष्ट्र में सबसे अधिक किसान आत्महत्याएँ हो रही हैं, वहाँ भी कहानी-उपन्यास कम ही हैं। सदानन्द देशमुख ने ‘बारोमास’ उपन्यास इसलिए लिखा कि वे आज भी गाँव में रहते हैं, गाँव के जीवन से उनकी निकटता ने ही किसानों की भयावह आत्महत्याओं पर लिखने को प्रेरित किया। संजीव जैसे वरिष्ठ कथाकार अपने उपन्यास ‘फाँस’ के माध्यम से विदर्भ के किसानों की दयनीय अवस्था से परिचित कराते हैं। वे यह भी बताते हैं कि इस काली मिट्टी में उर्वर शक्ति बहुत है लेकिन साधनों के अभाव में किसान स्वयं अनुर्वर हो गया है। गाँव का मुखिया, पटवारी, नेता, धार्मिक विश्वास, साहूकार और बैंक सब मिलकर उसे लूट रहे हैं। डॉ. अम्बेडकर की निर्वाण स्थली नागपुर, महात्मा गाँधी की कर्मस्थली वर्धा, विनोबा भावे की साधना स्थली पवनार तथा सन्त गाडगे बाबा और तुकाड़ोजी महाराज की इस कथित पवित्रा भूमि पर आज भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं, यह तथ्य दिन के उजाले की तरह सबके सामने है पर इसके समाधान के लिए कोई गम्भीर प्रयास नहीं किये जा रहे हैं, यह चिन्ता ‘फाँस’ के मूल में है।

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