कितनी नावों में कितनी बार - \nज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) से सम्मानित 'कितनी नावों में कितनी बार' अज्ञेय की 1962 से 1966 के बीच रचित कविताओं का संकलन है। यों तो 'अज्ञेय' की कविताओं के किसी भी संग्रह के लिए कहा जा सकता है कि वह उनकी जीवन-दृष्टि का परिचायक है, किन्तु प्रस्तुत संग्रह इस रूप में विशिष्ट है कि अज्ञेय की सतत सत्य-सन्धानी दृष्टि की अटूट, खरी अनुभूति की टंकार इसमें मुख्य रूप से गूँजती है।\n'कितनी नावों में कितनी बार' में कवि ने एक बार फिर अपनी अखण्ड मानव-आस्था को भारतीयता के नाम से प्रचलित अवाक् रहस्यवादिता से वैसे ही दूर रखा है जैसे प्रगल्भ आधुनिक अनास्था के साँचे से उसे हमेशा दूर रखता रहा है। मनुष्य की गति और उसकी नियति की ऐसी पकड़ समकालीन कविता में अन्यत्र दुर्लभ है।\nपाठकों को समर्पित है इस कृति का यह नया संस्करण।
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' - जन्म: 7 मार्च, 1911 को देवरिया ज़िले के कासिया इलाक़े में, एक शिविर में। प्रारम्भिक शिक्षा जम्मू एवं कश्मीर में। लाहौर में क्रान्तिकारी जीवन की शुरुआत। बाद में दिल्ली में क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन। अमृतसर में बम कारख़ाना बनाने के लिए पहल करते हुए गिरफ़्तार। जेल से छूटने के बाद क्रान्तिकारी जीवन से संन्यास और साहित्य लेखन एवं पत्रकारिता को पूर्णतः समर्पित। 1965-68 में साप्ताहिक 'दिनमान' का और 1977-79 में 'नवभारत टाइम्स' का सम्पादन। कृतियाँ : 17 कविता-संग्रह, 7 कहानी-संग्रह, 3 उपन्यास, 1 नाटक, 2 यात्रा-वृत्त, 3 डायरियाँ तथा अनेक निबन्ध और पत्र-संकलन प्रकाशित। अनेक कृतियों का सम्पादन तथा कई विदेशी कृतियों का अनुवाद। अनेक रचनाएँ अंग्रेज़ी, जर्मन, स्वीडिश में अनूदित। ज्ञानपीठ पुरस्कार के अतिरिक्त साहित्य अकादेमी पुरस्कार, गोल्डन ब्रेथ अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित। निधन: 4 अप्रैल, 1987।
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