क्षत मेदिनी, नाम ही कितना गंभीर और उत्कृष्ट जैसे कि इसका विषय। यूँ तो यह एक कथा संग्रह है, लेकिन बता यह भी दूँ कि इसे पढ़ते हुये मुझे उपन्यास जैसी फ़ीलिंग आती रही। कारण यही हो सकता है कि हर कहानी का कैनवास इतना बड़ा है कि पढ़ते हुये उपन्यास का ही आनन्द आता है। वैसे लेखन बड़ा गम्भीर विषय माना जाता है और ज्योति ने इस गंभीरता को कलम में उतारकर स्त्रियों की भावनात्मक मनोदशा की सही धार पर चोट की है। कहानियों की बात करें तो इस किताब में मौजूद कहानियाँ केवल परिस्थितियों और संवादों का मेल नहीं हैं, बल्कि हर संवाद के, भावनात्मक उतार-चढ़ाव के पीछे की स्त्री मनोदशा और सामाजिक मनोविज्ञान का लेखा-जोखा है। जैसे-जैसे हम किरदारों की ज़िन्दगी में शामिल होते हैं, शामिल होने का मतलब बारीकी से एक-एक गाँठ और जोड़ को खोलना होता है, वैसे-वैसे वे किरदार हमें असंख्य उपेक्षित और बेहद ज़रूरी सवालों के बीच खड़ा करते चले जाते हैं। अब तक ज़्यादातर रचनाओं में हमने पढ़ा कि स्त्रियाँ ‘कहूँ या न कहूँ’ के ऊहापोह से गुजरती रहती हैं। दो टूक तुरन्त कहने का साहस नहीं, मगर अब यह स्वाभाविक वृत्ति आज की स्त्री ने पैदा कर ली है, जिस से पुरुष के सारे तर्क निर्मूल हो जाते हैं।
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Jyoti VermaAdd a review
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