सुभाष चंद कुशवाहा की कहानियों में आज के बदलते गाँवों की बजबजाहट है, लूट, झूठ और फूट है। ये कहानियाँ उस नए हिंदुस्तान की ओर ले जाती हैं जहाँ ग़ैरबराबरी, जातिवाद, छुआछूत, धार्मिक उन्माद और आतंकवाद की खोल में अंध राष्ट्रवाद ने अपनी करतूतों से श्रमशील समाज को डरा दिया है। राजनीति के पैंतरे अन हो चले हैं। मुख्यधारा से अलग कर दिए गए समाज के साथ ये कहानियाँ, वर्तमान की उम्मीदों की महावृतांत रचती हैं। इनमें लोक समाज की धड़कनों को, वृहत्तर आयाम में सुना जा सकता है। कुल-मिलाकर आज के तिकड़मों और भारतीय लोक समाज की दुर्दशा को समझने में ये कहानियाँ हमारी मदद करती हैं।.
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