लड़की जो देखती पलटकर - साहित्य के हर दौर में कुछ लेखक ऐसे होते हैं जो प्रचलित फ़ैशनों की रौब में नहीं आते और अपनी अलग लीक बनाते हैं। इस आत्मविश्वास के पीछे यथार्थ की उनकी अपनी समझ और उस समझ पर भरोसा होता है। हमारे समय में क्षमा शर्मा ऐसी ही कहानीकार हैं। यह कहना सपाटबयानी होगी कि उनकी कहानियों में शहरी जीवन के छोटे-छोटे टुकड़े प्रतिबिम्बित होते हैं। असल बात है, जो वे देखती और दिखाती हैं, उसके प्रति उनका मानवीय और उदार नज़रिया। इस नज़रिये में किसी क़िस्म की भावुकता या लिजलिजेपन के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन उनकी कलात्मक तटस्थता उन्हें किसी तरह की दूरी या क्रूरता की ओर भी नहीं ले जाती। वे संक्रमण की पीड़ा को समझती हैं, पर उसके आगे घुटने नहीं टेकतीं। इसी तरह वे समकालीन आधुनिकता की चीरफाड़ करते हुए भी रूढ़िग्रस्तता या कालबाह्य मूल्यों को हसरत की निगाह से नहीं देखतीं। क्षमा शर्मा के इस रचनात्मक ताप का एक उल्लेखनीय परिणाम ऐसे स्त्री पात्र हैं जो स्वतन्त्रता के साथ जीने की उमंग से भरपूर हैं। वे तथाकथित सामाजिक मर्यादाओं से टकराती हैं और अपना रास्ता ख़ुद बनाती हैं। ज़िन्दगी से धोखा खाने के बाद भी उनकी आँच मन्द नहीं होती और वे फिर-फिर जोख़िम उठाती हैं। विफलताएँ उन्हें पस्त भले कर दें, पर तोड़ नहीं पातीं। और फिर एक व्यंग्य भरी हँसी तो है ही, जो उनके अनुभवजन्य सयानेपन की अभिव्यक्ति के रूप में सामने आता है। मज़ेदार बात यह है कि क्षमा जी ने कुछ ऐसे पुरुष पात्रों का भी सृजन किया है जिनमें परम्परा के ज़हर को पचा कर नये रास्तों पर चलने की बेचैनी दिखाई देती है। जो एक और चीज़ क्षमा शर्मा के कथा लेखन को विशिष्ट बनाती है वह है उपभोक्तावाद से गहरी वितृष्णा और पर्यावरण से परिवार जैसा प्रेम। यहाँ पेड़-पौधे भी जीवित पात्र बन जाते हैं, जिनके अस्तित्व की लड़ाई में मनुष्य सहभागी बनता है। कहानीकार की नज़र से वह पाखण्ड भी छिपा नहीं रह पाता जो एक ओर तो पर्यावरण के प्रति अनुराग प्रदर्शित करता है और दूसरी ओर उसे नष्ट करने की औद्योगिक साज़िश में शामिल है।
क्षमा शर्मा - प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार क्षमा शर्मा का जन्म अक्टूबर 1955 में हुआ था। हिन्दी में एम.ए. करने के बाद उन्होंने साहित्य और पत्रकारिता में पीएच.डी. की और पत्रकारिता में डिप्लोमा प्राप्त किया। उनके लेखन का दायरा बहुत विस्तृत रहा है। उनके आठ कहानी संग्रह, चार उपन्यास और स्त्री विमर्श से सम्बन्धित पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 'व्यावसायिक पत्रकारिता का कथा साहित्य के विकास में योगदान' उनकी शोध कृति है। बाल साहित्य के लेखन और सम्पादन में शुरू से ही क्षमा शर्मा की रुचि रही है। उनके पन्द्रह बाल उपन्यास और बारह बाल कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने बच्चों के लिए विश्व स्तर के बीस क्लासिक्स का हिन्दी रूपान्तरण किया है। देश के सभी पत्र-पत्रिकाओं में बच्चों, महिलाओं और पर्यावरण से सम्बन्धित विषयों पर सैकड़ों लेख लिख चुकी हैं। आकाशवाणी के लिए कहानियाँ, नाटक, वार्ताएँ, बाल कहानियाँ आदि नियमित रूप से लिखती रही हैं। उनकी टेलीफ़िल्म 'गाँव की बेटी' दूरदर्शन से प्रसारित हो चुकी है। उनकी कहानी 'रास्ता छोड़ो डार्लिंग' पर दूरदर्शन द्वारा फ़िल्म बनायी गयी है। क्षमा शर्मा की अनेक रचनाओं का अनुवाद पंजाबी, उर्दू, अंग्रेज़ी और तेलुगु में हो चुका है। क्षमा शर्मा हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा दो बार पुरस्कृत की जा चुकी हैं। बाल कल्याण संस्थान, कानपुर, इंडो-रूसी क्लब, दिल्ली तथा सोनिया गांधी ट्रस्ट, दिल्ली ने भी उन्हें सम्मानित किया है। भारत सरकार के सूचना मन्त्रालय ने उन्हें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार से पुरस्कृत किया है। अनेक समितियों तथा चयन मण्डलों की सदस्य क्षमा शर्मा के लेखन पर एक विश्वविद्यालय में शोध कार्य सम्पन्न हो चुका है तथा छह विश्वविद्यालयों में शोध कार्य जारी है।
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