दर्पण की कविताएँ दरअसल 'एन्टी पोयम्स' हैं। वो आश्चर्यजनक और गूढ़ बिंबों के बावजूद कल्पनाओं की बात नहीं करतीं। आपको थपकी देकर सुलाती नहीं। क्रांतियों को हर तरह से नकारने के बावज़ूद वे एक आंतरिक उद्वेग उत्पन्न करती हुई-सी लगती हैं। ज़्यादातर वे सहोदर की तरह बड़े प्रेम से आपको आधे रस्ते तक ले जाती हैं और फ़िर खुद गायब होकर आपके द्वारा खुद आप को, कविता के मर्म को या मंज़िल को ढूँढ लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। इस संग्रह की एक और बड़ी ख़ासियत इसका विशाल स्पेक्ट्रम है। दर्शन से लेकर प्रेम, प्रकृति से लेकर स्त्री-विमर्श, और संवेदनाओं से लेकर वर्जनाओं तक का शायद की कोई आयाम हो जो इस संकलन में अछूता रहा हो। कला पक्ष के हिसाब से भी ग़ज़ल, कविताएँ, वन लाइनर्स और क्षणिकाएँ सारा सब इसमें समाहित है। कई बार ऐसा लगता है कि ये कविताएँ अलग-अलग मनःस्थिति या परिस्थितियों में नहीं दरअसल अलग अलग व्यक्तियों द्वारा लिखी गयी हों। "रीड इट टू बिलीव इट।"
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