इस पुस्तक में हरिवंशराय बच्चन की मूल मधुशाला की प्रेरणा का पुनर्जागरण किया गया है, जिसमें प्रोफेसर बलराम सिंह ने अपनी वैज्ञानिक दृष्टि से सामाजिक बहुरसता को आधार मानकर उसकी गुत्थियों को हाला के माध्यम से सुलझाने का एक अप्रत्याशित प्रयास किया है। प्रो॰ सिंह की दूरदृष्टि में एक ओर भारतीय ग्रामीण अंचल और दूसरी ओर अमेरिका की आधुनिक ज्ञानधानी व सांस्कृतिक गढ़, बोस्टन, रहा है, जिसकी छाप मधुशाला छन्दों पर स्वाभाविक रूप से निखरती दिखती है। आपने कोरोना महामारी से लेकर जीवन-दर्शन तक को शिक्षा-दीक्षा, स्त्री-पुरुष, देश और सत्ता, ज्ञान-विज्ञान, व प्रकृति-दर्शन जैसे विषयों में पिरोते हुए एक आधुनिक छवि प्रस्तुत की है। ऐसे काल में ऐसी रचना की प्रासंगिकता निश्चित सिद्ध होगी।
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