मगरमुँहा - \nअपने पहले उपन्यास 'रानी कैकेयी के सफ़रनामा' में उन्होंने एक विराट फैंटेसी के माध्यम से भारतीय स्वतन्र्'ता संघर्ष के विवेचन और भटकाव को रेखांकित करते हुए क्रान्ति के वास्तविक स्वरूप और सही दिशा का राजनैतिक विकल्प रचा था। अपने इस उपन्यास में उन्होंने व्यक्ति के रूपान्तरण के माध्यम से एक बेहतर मनुष्य और समाज की नयी संरचना का स्वप्न रचा है और इसके व्यावहारिक क्रियान्वयन की रूपरेखा भी प्रस्तुत की है। प्रभात की सम्पूर्ण रचनात्मकता में महात्मा गाँधी के सक्रिय आदर्श की अन्तर्धारा आद्यन्त विद्यमान रही है। इस उपन्यास में भी व्यक्ति के द्वारा समग्र सामाजिक रूपान्तरण का जो आदर्श प्रस्तुत किया गया है वह भी गाँधी के पन्द्रह सूत्रीय कार्यक्रम का क्रियान्वित प्रतिरूप है।\nप्राचीन भारतीय सभ्यता, मान्यता, धार्मिक-विश्वास, रीति-रिवाज़ और सामाजिक संरचना की जीवन्त मिसाल—पौराणिक और पुरा-ऐतिहासिक नगरी उज्जैन के प्राचीन मोहल्ले मगरमुँहा से आरम्भ कर पूरे उज्जैन की परिक्रमा करता हुआ इसका कथा-चक्र परम्परा और आधुनिकता के बीच एक नैरन्तर्य के अन्तःसूत्र का अन्वेषण करता है और एक समग्र सामाजिक क्रान्ति के माध्यम से आधुनिक उज्जयिनी के सर्वांगीण काया-कल्प में पर्यवसित होता है। इसमें एक ओर है——आदर्श की पराकाष्ठा का मूर्तिमान चरित्र-शिखर तो दूसरी ओर है——उग्रपन्थ से मोहमुक्त चरम यथार्थवादी देवव्रत। आदर्श और यथार्थ की इस जुगलबन्दी से जो समाजसेवी अभियान शुरू हुआ है उसकी प्रतिश्रुति है——मेरा गाँव, मेरा नगर सबसे आगे उज्जैन प्रथम। इसका अगला क़दम है——मध्य प्रदेश प्रथम और भारत प्रथम; अन्ततः विश्वमानव के समग्र कल्याण की विश्वदृष्टि। इस उपन्यास के लगभग सभी पात्र आदर्शवादी हैं। शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और अध्यात्म में सक्रिय हैं। वे समर्पण और निष्ठा, त्याग और बलिदान से सामाजिक और मानवीय सम्बन्धों को नये सिरे से परिभाषित करते हैं और सामाजिक पुनर्निर्माण का एक नया महास्वप्न रचते हैं जो अन्ततः एक नये राजनैतिक विकल्प——दलविहीन प्रजातन्त्र में फलीभूत होता है।- धनंजय वर्मा
प्रभातकुमार भट्टाचार्य - जन्म: 6 दिसम्बर, 1932। शिक्षा: एम.ए. (राजनीति विज्ञान), पीएच. डी. (गाँधी दर्शन)। प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान, माधव महाविद्यालय, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन सहित कई शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं की स्थापना व अध्यापन से सम्बद्ध। कृतियाँ: राजनीति विज्ञान: एक अध्ययन, गाँधी दर्शन (शोध सन्दर्भ ग्रन्थ), एक गाँव घर सबका (नवसाक्षरों के लिए)। नाटक त्रयी——काठमहल, प्रेत शताब्दी, आगामी आदमी (समवेत मुक्तिकथा)। रानी कैकेयी का सफ़रनामा, मगरमुँहा (उपन्यास); सतोरिया (नाटक); कविता प्रभात : नीडराग, वृक्षराग, रागरंग, अनुराग, ऋतुराग, राग अजगरी, राग अवधूत (कविता-संग्रह); अट्ठारह संस्कृत नाटकों का हिन्दी रूपान्तरण एवं पुनः रचना। शताधिक हिन्दी नाटकों की प्रस्तुति/निर्देशन। आठ संस्कृत नाटकों का मूल संस्कृत एवं हिन्दी रूपान्तरण का निर्देशन। मालवी लोक नाटक 'माच' का पुनराविष्कार एवं प्रयोग। पुरस्कार: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के दो पुरस्कार । मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सम्मान, संगीत नाटक अकादेमी सम्मान, श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति संस्थान का शताब्दी पुरस्कार, भवभूति अलंकरण, 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में विश्व हिन्दी सम्मान।
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