Mahabharat : Yatharth Katha

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धर्म और अधर्म, न्याय और अन्याय, सत्य और असत्य का महाआख्यान है महाभारत। इसके सभी चरित्र अपनी विस्मयजनक विलक्षणता लिए हुए हैं। सबके अपने-अपने सच भी हैं और कुछेक सामूहिक सत्य और असत्य भी ।\nफिर भी भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र, गान्धारी, कुन्ती और द्रौपदी, युधिष्ठिर और दुर्योधन (सुयोधन) हमें जहाँ तहाँ से प्रश्नाकुल और दुविधाग्रस्त | करते चलते हैं। कभी खीज और आक्रोश तो कभी वितृष्णा से भी मथते और विकल करते रहते हैं।\nयह मात्र ऋषिकवि की सहज शैली मात्र नहीं है। आर्षकवित्व का अपने युग के मनोद्वन्द्व का, प्रकारान्तर से किसी भी समय के मनुष्य का ऐसा जीवन सत्य है, जो हमें उस अर्धसत्य के साथ पूर्ण सत्य और महाभारत के मूल मर्म का बोध कराता है, जिन्हें हम किसी भी युग की मनुष्यता का सत्य या यथार्थ कह सकते हैं।\nमहाभारत सत्य और असत्य के इसी जीवन-बोध की गाथा है जिसे इस बार आज के युग का यथाथ भी इस अध्ययन में परिलक्षित होगा!\nयुधिष्ठिर धर्म और सत्य के महत आदर्श के रूप में चित्रित किये गये हैं। किन्तु कौन नहीं जानता कि उनके द्वारा आचरित धर्म और बोला गया सत्य भी आधा-अधूरा ही है।\nकवि बोधिसत्व की भूमिका यहाँ उस नेवले की तरह है जो युधिष्ठिर के अति महत्वाकांक्षी यज्ञ में इस अभीप्सा में लोट रहा है कि उसका शेष शरीर भी स्वर्णमय हो उठे, पर यहाँ हुआ यज्ञ भी एक अर्धसत्य के सिवाय और क्या है ?\nप्रत्येक समय की मनुष्यता की यह विकल आकांक्षा भी क्या सबसे बड़ा अर्धसत्य नहीं है? पर उस नेवले का यह स्वप्न भी तो एक अर्ध-स्वप्न होकर युगीन यथार्थ रह जाता है। यही तो शायद हमारे युग का यह लेखक भी कहना चाह रहा हो।\nबोधिसत्व की यह पुस्तक पौराणिक आख्यानों को एक नये धरातल पर खड़े होकर देखने के लिए आमन्त्रित करती है, जहाँ कथा का सत्य और अर्धसत्य अपने निर्मल यथार्थ के साथ स्पष्ट दिखने लगता है!\n- विजय बहादुर सिंह

देवों के देव महादेव जैसे विख्यात टीवी धारावाहिक के मुख्य-मूल शोधकर्ता डॉ. बोधिसत्व की पौराणिक विषय पर यह पहली किताब है। महाभारत की इस यथार्थ कथा में भी महादेव वाली नवीनता और वैचारिक गम्भीरता हर अध्याय में सहज ही देखी जा सकती है। बिना सन्दर्भ के लिखे जा रहे पौराणिक लेखन के बीच डॉ. बोधिसत्व का यह आख्यानपरक लेखन सहज ही अलग से पहचाना जा सकता है। 11 दिसम्बर 1968 में उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद के भिखारीरामपुर गाँव में जन्मे बोधिसत्व का मूल नाम अखिलेश कुमार मिश्र है। इनके अब तक चार कविता संकलन प्रकाशित हैं, जिनके नाम सिर्फ कवि नहीं, हम जो नदियों का संगम हैं, दुःखतन्त्र और ख़त्म नहीं होती बात है। बोधिसत्व उच्च शिक्षा प्राप्त हैं, हिन्दी वाले हैं, जो साहित्य और सिनेमा दोनों में बराबर दखल रखते हैं। ये यूजीसी के फ़ैलो रहे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से किया गया शोध प्रबन्ध तार सप्तक कवियों की कविता और काव्य सिद्धान्त पुस्तक के रूप में प्रकाशित है। बोधिसत्य को कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, संस्कृति अवॉर्ड, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान, फ़िराक़ गोरखपुरी सम्मान आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हैं। कई कविताओं के भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हैं। कुछ कविताएँ मास्को विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। दो दर्जन से अधिक टीवी धारावाहिकों और ओटीटी प्लेटफॉर्म के शोज के स्क्रिप्ट का प्रमुख हिस्सा रहे बोधिसत्व के क्रेडिट में शिखर और 'धर्म' जैसी फ़िल्में भी शामिल है। पिछले दिनों स्टार प्लस पर प्रसारित हुए धारावाहिक 'विद्रोही' का निर्माण अपने प्रोडक्शन हाउस 'गाथा प्रोडक्शंस से किया है। पत्नी कवयित्री आभा बोधिसत्व, बेटे डॉ. यतीन्द्र और बेटी भाविनी के सत्संग में मुम्बई में रहते हैं और निरन्तर साहित्य और सिनेमा के साथ टीवी धारावाहिक के लिए लेखन और निर्माण में व्यस्त ह। सम्पर्क : श्रीगणेश सी. एच.एस. सेक्टर-3, प्लॉट-288, फ्लेट-, स्वातंत्र्य वीर सावरकर मार्ग चारकोप, कांदीवली (पश्चिम), मुम्बई-100067 (महाराष्ट्र) मो.: 9820212574 मेल : abodham@gmail.com

बोधिसत्व

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