महामाई - पौराणिक मिथकों को लेकर रचनाओं के सृजन की परम्परा पुरानी रही है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित रचनाकार चन्द्रशेखर कंबार की रचनाओं में ऐसे मिथकों का पुनःसृजन हुआ है। उदाहरण के लिए इसी नाटक में नाटककार ने शेटिवी का चित्रण मृत्यु की देवी के रूप में किया है जबकि कन्नड़ लोककथा में उन्हें भाग्य की देवी का दर्जा प्राप्त है। विश्व की अधिकतर लोककथाओं की तरह इस नाटक का मूल कथ्य मृत्यु पर मनुष्य की जीत है, हालाँकि प्रत्येक लोककथा में इस महाविजय के तरीक़े व साधन अलग-अलग रहे हैं। उदाहरणार्थ मार्कंडेय की लोककथा में भक्ति, सावित्री की कथा में ब्रह्मज्ञान व हरक्युलिस में असीम शारीरिक शक्ति जीत के साधन रहे हैं। 'महामाई' में इसे दूसरे ढंग से रखा गया है। यहाँ मृत्यु की देवी महामाई और उसके दत्तक पुत्र वैद्य संजीव के बीच अन्तर्द्वन्द्व है। माई जहाँ लोगों का प्राण हरती है, वहीं पुत्र उन्हें जीवनदान देता है। अन्ततः विजय पुत्र की होती है, लेकिन यहाँ यह जीत वैद्यक दक्षता के कारण नहीं, बल्कि मानवीय प्रेम व संवेदन के कारण हुई है। 'महामाई' की सार्थकता आज की मानवीय अवस्था से है जहाँ मनुष्य बिना आज़ादी के विश्व-शक्तियों द्वारा नियन्त्रित है। नाटक का नायक ऐसे विश्व में जी रहा है जहाँ आस्था जीवन में नहीं, मौत में है। जहाँ मौत की देवी उसे शक्ति तो देती है, लेकिन उस शक्ति को अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल करने की आज़ादी नहीं देती। यहीं नायक संजीव शिव को जीवन के अधूरेपन और प्रेम की अनुभूति का भान होता है। इन्हीं मूलभूत प्रश्नों को लेकर प्रस्तुत नाटक 'महामाई' का ताना-बाना बुना गया है।
चन्द्रशेखर कंबार - वर्ष 1937 में कर्नाटक के घोदगेरी नाम एक छोटे से गाँव में जनमे पद्मश्री चन्द्रशेखर कंबार कन्नड़ के प्रख्यात नाटककार-कवि-उपन्यासकार आलोचक हैं। इनकी रचनाओं में प्राचीन मिथकों-सन्दर्भों को नयी और आज की रोशनी में पुनर्सजित किया गया है। चौबीस नाटकों, आठ कविता संकलनों, छः गद्य कृतियों व चौदह आलोचनात्मक पुस्तकों के साथ चन्द्रशेखर कंबार का स्थान कन्नड़ साहित्य में अतुलनीय है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्री कंबार की प्रमुख कृतियों में तकराठी नवरू, साविरादा नेरालू, चकोरी (कविता); जोकुमारस्वामी, चलेशा, जयसिदानायका, हराकेया कुरी (नाटक); करिमायी, सिगरेव्वा मत्तु अरामाने (कहानी साहित्य) आदि हैं। श्री कंबार की पाँच पुस्तकें कर्नाटक साहित्य अकादेमी पुरस्कार से पुरस्कृत हैं। जोकुमारस्वामी को वर्ष 1975 में कमलादेवी पुरस्कार (नाट्य संघ द्वारा), जयसिदानायका को वर्ष 1975 में वर्द्धमान प्रशस्ति (कर्नाटक सरकार द्वारा), साविरादा नेरालू को वर्ष 1982 में अशान पुरस्कार (केरल सरकार द्वारा प्रदान किया गया है। नाटक में अपने अवदान के लिए वर्ष 1990 में के.वी. शंकरे गौड़ा पुरस्कार (वर्ष 2010) के अलावा चन्द्रशेखर कंबार संगीत नाटक अकादेमी व साहित्य अकादेमी पुरस्कार से भी अलंकृत हैं। अनुवादक - सान्त्वना निगम - उत्तरप्रदेश में पली-बढ़ी, मातृभाषा बांग्ला। विगत पच्चीस वर्षों से अमेरिकी विश्वविद्यालय में हिन्दी का अध्यापन। अलीबाबा, खारा पानी, असमाप्त, ताम्रपत्र, क़िस्सा हक़ीम साहब जैसे कई प्रसिद्ध नाटकों का अनुवाद।
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